शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

नाटक जितनी लव अपने अफसाने

**नाटक

मंच पर हुई प्यार की प्रस्तुति

जितने लब उतने अफसाने

     उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र इलाहाबाद के प्रेक्षागृह में वैलेंटाइन डे के अवसर पर अख्तर अली द्वारा लिखित नाटक -जितने लव उतने अफसाने - की शानदार प्रस्तुति की गई । हिंदी रंगमंच पर प्रेम को प्रस्तुत किया जाना हमेशा से बहुत संवेदनशील मसला रहा है । भरत नाट्यशास्त्र के अनुशासन में कमोबेश बंधे होने के कारण हिंदी नाटक मैं प्रेम को दिखाने मैं हमेशा सीमाएं बनाकर रंगकर्मी चलते रहे हैं लेकिन इसलिए कुछ वर्षों में इस विषय को रंगकर्मियों ने पूरे साहस के साथ प्रस्तुत करने का जोखिम उठाना शुरू कर दिया है । यह अलग बात है कि इस तरह की प्रस्तुतियों में फिल्मों और टीवी धारावाहिकों का प्रभाव  देखा जा सकता है । यह नाटक भी प्रेम सम्वेदनाओं का  कोलाज है यद्यपि इसमें  कोई ऐसी बात नहीं कही गई है  जो इसके पहले फिल्म या टीवी धारावाहिकों में  पेश न की गई हो । इस नाटक मैं  कलाकारों ने  बहुत अच्छा अभिनय किया ।  दोनों कलाकार काव्यात्मक रहे और बहकने  की तमाम गुंजाइश  के बावजूद अभिनेता और अभिनेत्री ने संतुलन बनाए रखा।  कुछ कंपोजीशन  बहुत ही अच्छी थी  । संगीत भी  यथोचित रहा  जो लगातार  प्रस्तुति के वातावरण को गति प्रदान कर रहा था । प्यार एक ऐसा विषय है जिसमें जरा सी चूक हो जाने पर यह हल्केपन का शिकार हो जाता है  ।  इस प्रस्तुति में अख्तर अली का ट्रीटमेंट इस विषय के साथ पूरी संजीदगी से भरा हुआ रहा । नतीजतन इस प्रस्तुति ने कहीं-कहीं दिल को छू भी लिया । मजेदार बात यह है क़ि प्रेम की अनुभूति के बिना कोई रचना बनती भी नहीं । प्रेम साहित्यिक रचनाओं में जीवन  का नव सृजन है । और यह सृजन इस प्रस्तुति में दिखाई देता है । पूरी टीम को बहुत बहुत बधाई ।

**रिपोर्ट  / अजामिल

बुधवार, 31 जनवरी 2018

नाटक मदारीपुर जंक्शन

××नाटक
द थर्ड बेल ने की
मदारीपुर जंक्शन
की शानदार प्रस्तुति
××सभी कलाकारों ने
कमाल कर दिया
इलाहाबाद के रंग जगत में इस समय जबकि रंग संस्थाओं द्वारा उनके घिसे-पिटे नाटकों को दोहराने का सिलसिला चल रहा है ऐसे में इलाहाबाद की बहु चर्चित संस्था द थर्ड बेल ने कथाकार बालेंदु द्विवेदी के उपन्यास मदारीपुर जंक्शन पर आधारित वरिष्ठ रंग निर्देशक आलोक नायर द्वारा रुपांतरित परिकल्पित तथा निर्देशित नाटक मदारीपुर जंक्शन की उत्तर मध्य क्षेत् सांस्कृतिक केंद्र  के मंच पर  शानदार प्रस्तुति करके  सबको एक बार फिर नाटक के केंद्रीय विचार दलित विमर्श से न सिर्फ जोड़ा बल्कि मानसिक स्तर पर दलितों के अधिकार को लेकर दर्शकों को सोचने पर विवश किया ।  यह नाटक आलोक नायर का एक ऐसा प्रयोग था जो समाज की विकृतियों और विसंगतियों को हास्य और व्यंग्य में लपेटकर नाटक के कथ्य को इस तरह रखता है कि आप अंदर से हिल जाते हैं और आज की सियासत का सच जान पाते हैं ।
यह नाटक इस अर्थ में भी एक अभिनव प्रयोग कहा जा सकता है कि इसमें सभी कलाकारों ने अपने संवाद इलाहाबाद जनपद की स्थानीय बोली और मुहावरों के लटके झटके के साथ न सिर्फ बोले बल्कि उसका आरंभ से अंत तक पूरी ईमानदारी से निर्वाह किया । यह एक मुश्किल काम था लेकिन नाटक के कलाकारों ने इसे बखूबी कर दिखाया । नाटक में मौजूद लचीलेपन के कारण नाटक में अभिनेताओं को अभिनय को खूब स्कोप मिला जिसके कारण वे अपने पात्र को गहरे तक उतर कर जी सके । दो एक कलाकारों को छोड़कर लगभग सभी कलाकारों के संवादों की अदायगी एकदम परफेक्ट थी । सचिन चंद्रा और कुछ अन्य कलाकारों ने इस नाटक को जीवंत बना दिया जिसके चलते नाटक की त्रासदी अपने मर्मस्पर्शी स्वरुप में दर्शकों के समक्ष आ सकी । आलोक नायर का यह प्रयोग हटकर इसलिए भी था क्योंकि इसमें नाटक के कंटेंट को सहज और सर्वग्राही बनाने की पूरी ईमानदार कोशिश की गई । नाटक किसी पार्टी की नारेबाजी में तब्दील नहीं हुआ यही इस नाटक की सबसे बड़ी खूबी रही किसी भी तरह का उपदेश इस प्रस्तुति में नहीं परोसा गया
  इस नाटक का संगीत प्रतिभाशाली रंग अभिनेत्री और निर्देशिका रितिका अवस्थी ने तैयार किया था जो कि कंटेंट को गति देने में पूरी तरह सहायक रहा । सेट डिजाइनिंग और बेहतर की जानी चाहिए थी । नाटक की अगली प्रस्तुतियों में इस ओर अवश्य ध्यान दिया जाएगा । ऑल इंडिया न्यू थिएटर द थर्ड बेल को इस शानदार प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई देता है और उम्मीद करता है कि आने वाले दिनों में हम ऐसी ही प्रासंगिक प्रस्तुतियां इस संस्था की ओर से आगे भी देखेंगे ।
** समीक्षक / अजामिल **सभी चित /्र विकास चौहान

बुधवार, 10 जनवरी 2018

नाटक हवालात की प्रस्तुति

**नाटक / बैकस्टेज  की प्रस्तुति -  हवालात  **निर्देशक / प्रवीण शेखर इलाहाबाद की सुप्रसिद्ध नाट्य संस्था बैकस्टेज ने हिंदी के चर्चित कवि पत्रकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना लिखित नाटक हवालात की प्रस्तुति कवि केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं के साथ उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में की यह नाटक सर्दी और भूख से परेशान 3 तथाकथित आम आदमी और एक दरोगा के माध्यम से आज की सियासत में चल रहे् कुचक्र और यह भी बताता है कि किस तरह  की ओर इशारा करता है और यह भी बताता है कि किस तरह यथास्थिति बनाए रखने की साजिश चल रही है और विरोध के स्वर दबाए जा रहे हैं इस नाटक का कथ्य काफी जोरदार था लेकिन हल्के फुल्के मनोरंजन के लटके-झटकों के चलते यह नाटक कई स्थानों पर पुनरावृति का शिकार हो गया मनोरंजन नाटक के लिए बहुत जरूरी है लेकिन मनोरंजन के चलते अगर नाटक के कंटेंट को नुकसान पहुंचता है तो इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता nache निर्देशक प्रवीण शेखर को अब दर्शक एक ब्रांड की तरह लेते हैं और उनकी प्रस्तुतियों से कुछ अलग ही तरह की वैचारिक उर्जा के पैदा होने की उम्मीद करते हैं जो कि गलत भी नहीं है पिछली प्रस्तुतियों की तुलना में प्रवीण शेखर की यह प्रस्तुति अपने दर्शकों के सामने कुछ नया नहीं दे पाई यद्यपि प्रवीण शेखर ने पर उसने भी कहीं कोई कोर कसर नहीं छोड़ी बस जो कुछ मंच पर घट रहा था वह टॉम एंड जेरी कार्टून जैसा था नाटक के सभी पात्रों दे अपनी भूमिका को पूरी शिद्दत के साथ जिया और वह इस कंटेंट को संभालने में अपनी ओर से जो कुछ भी कर सकते थे उन्होंने बाकायदा कर दिखाया नाटक ही कुछ कंपोजीशन बहुत अच्छी बनी जोकि प्रवीण शेखर के विशेषता भी होती है सभी कलाकारों की संवादों की अदायगी बेशक लाउड थी लेकिन इस तरह की प्रस्तुतियों के लिए यही अंदाज जरूरी भी था प्रवीण शेखर अपनी प्रस्तुतियों में प्रोफेशनल अंदाज रखते हैं इसलिए उनके लिए प्रेक्षागृह में बैठे सभी दर्शक सिर्फ दर्शक होते हैं जिसके कारण नाटक नाटक के होने से पहले वाली नाटक नौटंकी से बच जाता है और समय बर्बाद नहीं होता यह खुशी की बात है कि प्रवीण शेखर देश के तमाम हिस्सों में इलाहाबाद के रंगमंच का शानदार प्रतिनिधित्व करते हैं और इलाहाबाद की एक पहचान सुनिश्चित करते हैं इस प्रस्तुति में मंच के कई कोने अंधेरे में डूबे रहे जिसके कारण अंधेरे में मंच पर जो कुछ घटित हुआ उसे दर्शक नहीं देख पाए ऑल इंडिया न्यू़ थिएटर प्रवीण शेखर और उनकी टीम को इस प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई देता है और उम्मीद करता है अगली प्रस्तुति में और भी संतुलन कायम किया जाएगा ।

** समीक्षक अजामिल

** सभी चित्र विकास चौहा

शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

नौटंकी दीपदान की प्रस्तुति

**नौटंकी

** स्वर्ग के

मंच पर हुई प्रतिज्ञा शौर्य गाथा की अविस्मरणीय प्रस्तुति

*दीपदान*

इलाहाबाद की सुप्रसिद्ध नाट्य संस्था स्वर्ग रंगमंडल के कलाकारों ने उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में सुप्रसिद्ध नाटककार डॉ रामकुमार वर्मा लिखित कृति पन्ना धाय की नौटंकी शैली मैं शानदार प्रस्तुति की इस रचना का नौटंकी रूपांतरण बहुचर्चित नाट्य रूपांतरकार राज कुमार श्रीवास्तव ने किया था उत्तर प्रदेश के अनेक शहरों कस्बों से आए दर्शकों के अलावा स्थानीय रंगकर्मियों ं और संस्कृतिकर्मियों से खचाखच भरे प्रेक्षागृह में  इस नाटक नहीं  सभी दर्शकों को  मंत्रमुग्ध कर लिया नाक की प्रस्तुति काफी खुशी हुई थी और पारंपरिक  नौटंकी की शैली और आधुनिक नाटकों में चल रहे नए प्रयोगों के साथ मिलकर इस प्रस्तुति में काफी कुछ ऐसा किया गया था जो इसे आज के दौर के लिए प्रासंगिक बनाता था यह नौटंकी एक भव्य सेट का आभास देने वाले मंच की बेहतरीन परिकल्पना के साथ की गई संगीत में पूरे माहौल को और सजीव बनाने में बहुत सहयोग किया इस नौटंकी में लगभग सभी कलाकारों ने बहुत अच्छा अभिनय किया इलाहाबाद की बहुचर्चित अभिनेत्री और नाट्य निर्देशिका सोनम सेठ ने अपनी भूमिका को अपने किरदार में डूबकर किया जिसके कारण कई हिस्से नौटंकी के बहुत मर्मस्पर्शी हो गए अदिति की भूमिका भी दिल को छू लेने वाली थी हर स्थान पर अदिति की आवाज चरित्र के बिल्कुल अनुरूप थी अन्य कलाकारों ने भी अपने अपने किरदार को जीने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी नाटक नहीं संवादों की शैली संगीत मैं गोली मिली होती है बावजूद इसके संवाद कहानी को आगे ले चलने में कामयाब रहे राज कुमार श्रीवास्तव ने नौटंकी रूपांतरण बहुत अच्छा किया इस शानदार नौटंकी की ताकत बने बहुचर्चित लोकनाट्य समर्पित रंगकर्मी अतुल यदुवंशी उन्होंने इसका निर्देशन एक नए अंदाज में करके यह साबित कर दिया की नौटंकी भले ही कल की चीज़ हो लेकिन उसकी जरूरत आज भी उतनी ही है जितनी बीते कल में थी इस पूरे कार्यक्रम का संचालन पूरी ऊर्जा के साथ सुप्रसिद्ध कवि श्लेष गौतम ने किया और वह लगातार मंच के साथ दर्शकों को न सिर्फ जोड़ें रहे बल्कि उन्हें शिक्षित भी करते रहे ।

** समीक्षक अजामिल

** सभी चित्र वरिष्ठ छायाकार विकास चौहान

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

नाटक अकेलापन की प्रस्तुति

××नाटक
अकेलापन
दास्तान बड़े बुजुर्गों के अकेलेपन की
पिछले दिनों उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में जाने माने रंग निर्देशक अफजल खान द्वारा लिखित नाटक अकेलेपन की प्रस्तुति अफजल खान के निर्देशन में ही की गई आधुनिकता की गिरफ्त में दम तोड़ते पारिवारिक रिश्ते की व्यथा कथा इस प्रस्तुति में कहने की कोशिश की गई है पूरी दुनिया के फलक पर बड़े बुजुर्ग बहुत तेजी से अकेले होते जा रहे हैं और उनका यह अकेलापन धीरे-धीरे उन्हें मौत की तरफ ले जा रहा है इस प्रस्तुत की कथावस्तु बेहद प्रासंगिक है लेकिन अफसोस इस बात का है यह प्रस्तुति विचार और दृश्यों की पुनरावृत्ति और ठहराव की शिकार होकर उस तरह से प्रभावी नहीं बन पाई जैसे कि इसे होना चाहिए था और हम अफजल खान जैसे समर्थ निर्देशक से इसके प्रभावी होने की उम्मीद करते रहे हैं कहानी बुजुर्गों के अकेलेपन को ऊपर ऊपर स्पर्श करती रही और गहराई में बहुत सारे विरोधाभास छोड़ गई बड़े बुजुर्गों का अकेलापन बहुत बड़ी समस्या है जिसे उठाने के लिए इस समस्या की गहराई में जाना बहुत जरुरी है सोचना होगा कि इसमें दिखाई गई करोड़पति माली हालात वाली किसी बुजुर्ग महिला का अकेलापन किस तरह का होगा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की आवश्यकता है और ऐसी स्त्री के साथ परिस्थितियां क्या बनेगी कौन उसके साथ होगा और कौन नहीं यह सारी बातें देखना होगा बावजूद इसके अफजल खान ने अपनी कोशिश में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी एकल प्रस्तुति में डॉक्टर प्रतिमा वर्मा को लगभग 30 वर्षों के बाद मंच पर देखना अभिभूत कर देने वाला था सच कहा जाए तो उनके बेहतरीन अभिनय दे एक कमजोर स्क्रिप्ट को भी सब तरफ से भराव दिया और संभाले रखने की कोशिश की प्रतिमा वर्मा की इस वापसी को सार्थक और सकारात्मक रुप से देखा जाना चाहिए और उम्मीद करना चाहिए कि अब वह मंच से फिलहाल कुछ वर्ष वापस नहीं होंगी कुल मिलाकर इस प्रस्तुति में और कल्पनाशीलता तथा वैचारिक समृद्धता की आवश्यकता थी जोकि अफजल खान जैसे निर्देशक सहज ही कर सकते हैं संगीत पक्ष कमजोर था जो फिल्रर की तरह पूरे नाटक में बज रहा था जिससे संवादों के सुनने में कठिनाई पैदा हो रही थी इस प्रस्तुति को इंडोनेशिया ले जाने से पहले हम आग्रह करते हैं कि नाटक के निर्देशक अफजल खान नाटक के मुख्य कथावस्तु को और अधिक तार्किक बनाने की कोशिश करें आज प्रस्तुति से नाटकीयता को कम करते हुए जिन देशों की अवधि जरूरत से ज्यादा हो गई है उसकी अवधि को संतुलित करने की कोशिश करें इसमें कोई शक नहीं कि अफजल खान ने एक बेहतर विषय पर एक अच्छी प्रश्न याद करने की कोशिश की है यह विषय आज अप्रासंगिक भी है जरूरी भी है और दुनिया भर के करोड़ों-करोड़ों बड़े बुजुर्गों की व्यथा-कथा भी व्यक्त करती है कोई भी प्रस्तुति कभी अंतिम नहीं होती उसमें लगातार बदलाव होते रहते हैं यह प्रस्तुति भी समय के अनुसार और अधिक बड़े बुजुर्गों के अकेलेपन की करीब आएगी हम इसकी उम्मीद करते हैं मंच पर रोशनी थी लेकिन उस रोशनी में अकेलेपन का अवसाद झूठा लग रहा था ।
** समीक्षक अजामिल
** सभी चित्र विकास चौहान
*** इस प्रस्तुति के लगभग ढाई सौ चित्र विकास चौहान ने क्लिक किए हैं जो रंगकर्मी इन तस्वीरों को अपने पास सहेजना चाहे वह विकास चौहान से संपर्क कर सकता है