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सोमवार, 15 सितंबर 2025
अभिनय: जीवन की अनिवार्य कलारँगमंचजहाँ अभिनय ज़िंदगी है...अभिनय: जीवन की अनिवार्य कलाजीवन ही अभिनय है: अभिव्यक्ति और आत्मविश्वास की कला”“अभिनय: बचपन से बुढ़ापे तक हमारा अनजाना साथी”“नकल से नैचुरल तक: अभिनय ही जीवन की भाषा है”मंच से आगे: अभिनय जो हमें खुद से मिलाता है”अभिनय—मनुष्य की सबसे स्वाभाविक अभिव्यक्“जीना ही अभिनय करना है: संवेदनाओं का संवाद” हमारे जीवन की हर क्रिया और प्रतिक्रिया दूसरों को प्रभावित करने वाली अभिनय की ही एक कड़ी है। दिन के चौबीसों घंटे में ऐसा एक भी पल नहीं होता जब हम अपनी बात को व्यक्त करने के लिए अभिनय का सहारा न ले रहे हों। हमारा मस्तिष्क किसी भी कार्य को संपादित करते हुए लगातार अच्छा या बुरा अभिनय करता रहता है।असल में, हमें जीवन में जो बातें प्रभावित करती हैं, या जिन लोगों का कोई अंदाज़ हमें अच्छा लगता है, उनकी नकल करना हम सहज रूप से चाहते हैं। यही नकल और अभिनय हमें सफलता तक पहुँचने का मार्ग दिखाते हैं। जब कभी कोई कहता है – “ज्यादा एक्टिंग मत करो” – तो इसका सीधा अर्थ यह होता है कि हम सामने वाले के आचरण से प्रभावित हो चुके हैं।अभिनय हमारी बातचीत को रोचक और प्रभावी बना देता है। बिना शरीर की हलचल के, बिना चेहरे की मुद्राओं और आंगिक चेष्टाओं के, हम अपनी बात किसी तक पहुँचा ही नहीं सकते। जैसे ही हम बोलना शुरू करते हैं, हमारी आँखें, हाथ और पूरा शरीर हमारी बात के अनुरूप संदेश देने लगते हैं। चेहरे की मुद्राएँ बदलने लगती हैं – कभी खुशी, कभी नाराज़गी, कभी हँसी तो कभी आँसू। यह सब कुछ अत्यंत स्वाभाविक है और इसके पीछे हमारा मस्तिष्क और हमारी संवेदनाएँ सक्रिय रहती हैं। वास्तव में, अभिनय की असली जान हमारी संवेदनाएँ ही होती हैं।बचपन से ही हम अभिनय करते चले आते हैं। छोटे-छोटे बच्चे अपने बड़ों की उठने-बैठने, चलने-फिरने और बोलने की नकल करते हैं। यही नकल उनके व्यक्तित्व को आकार देती है। जैसे-जैसे हम परिपक्व होते जाते हैं, हमारा विवेक और अवलोकन शक्ति हमारे अभिनय को और गहरा तथा प्रभावी बना देती है।यह भी सच है कि ज़बरदस्ती किया गया अभिनय अक्सर नकली प्रतीत होता है। रंगमंच और सिनेमा में किसी विशेष पात्र का अभिनय इसलिए प्रभावशाली लगता है क्योंकि वह कलाकार अपनी संवेदनाओं को उस पात्र की सामाजिकता और जीवन से जोड़ देता है। तभी हम कहते हैं – “उसका अभिनय बहुत नैचुरल था।”अभिनय सिर्फ बोलने या मुद्राओं तक सीमित नहीं है, यह हमारी जीवन दृष्टि का विस्तार है। एक अच्छा अभिनेता वह है जो जीवन का बारीक़ी से अवलोकन करता है और उसे सहजता से व्यक्त करता है। हर कोई नकल करता है, लेकिन कलाकार वही बन पाता है जिसका अवलोकन गहरा और अभिव्यक्ति स्वाभाविक हो।फिल्मों और रंगमंच के अभिनेता हमें इसलिए आकर्षित करते हैं क्योंकि उनका आत्मविश्वास और अभिव्यक्ति की क्षमता सामान्य से अलग होती है। अभिनय हमारी व्यक्तित्व विकास की भी सबसे बड़ी कला है। यह हमें आत्मविश्वासी, संवेदनशील और भावनात्मक रूप से परिपक्व बनाता है।अभिनय केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज पर असर डालने वाली एक सशक्त कला है। बड़े अभिनेता सिर्फ पर्दे पर नहीं, बल्कि अपनी निजी जिंदगी में भी समाज के लिए आदर्श बन जाते हैं। उनके आचरण की नकल लोग सहज रूप से करने लगते हैं।आज की दुनिया में जब लोग अवसाद और अकेलेपन से जूझ रहे हैं, अभिनय मानसिक संतुलन और आंतरिक शांति का एक कारगर साधन बन सकता है। यह हमें चिंता से मुक्त करता है और सोच को व्यापक और तर्कसंगत बनाता है। इसीलिए ज़रूरी है कि स्कूलों में अभिनय कार्यशालाएँ आयोजित की जाएँ, ताकि बच्चे न केवल आनंद लें बल्कि जीवन दृष्टि का विस्तार भी पाएँ।अभिनय हमें यह समझने का अवसर देता है कि हम वास्तव में कौन हैं और हमें क्या होना चाहिए। यह सामाजिक संतुलन की दिशा में विनम्र प्रयास भी है और आत्म-खोज का सुंदर साधन भी।– अजामिल
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