गुरुवार, 18 सितंबर 2025

मन की शांति और हमारा स्वास्थ मन की शांति की तलाश और मानसिक स्वास्थ्य का संकटआज का समय सामाजिक, आर्थिक और कार्य-क्षेत्र की समस्याओं से इतना घिरा हुआ है कि इंसान के लिए चैन से जीना कठिन हो गया है। आधुनिकता ने हमारी जिंदगी को आसान बनाने के बजाय उसमें ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी हैं, जिनके कारण हम एक अनचाही प्रतियोगिता में भागते जा रहे हैं। दुख की बात यह है कि हमें यह भी नहीं पता कि हम आखिर चाहते क्या हैं।एक समय था जब मनुष्य का सबसे बड़ा लक्ष्य मन की शांति हुआ करता था। लोग शांति की तलाश में जंगलों और पहाड़ों का रुख करते, एकांतवास अपनाते और जीवन से ऐसे साधनों को हटा देते जो तनाव और अशांति पैदा करते थे। 60 वर्ष की आयु पार करने के बाद लोग वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करते थे, जहां उनकी आध्यात्मिक यात्रा शुरू होती थी। परिवार भी अपने बड़े-बुजुर्गों को इस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता था। यह अपमानजनक नहीं बल्कि सम्मानजनक माना जाता था।उन दिनों जीवन सरल था। इच्छाएं सीमित थीं, मन शांत रहता था और साधु-संन्यासियों की शरण में लोग ईश्वर को समझने की कोशिश करते थे। उनका जीवन गरिमामय और संतोष से भरा होता था।लेकिन आज परिस्थितियां बिल्कुल उलट हैं। आधुनिक मनुष्य जान-बूझकर या अनजाने में भौतिकता की दौड़ में फंस चुका है। यह जानते हुए भी कि इस संसार से कुछ भी साथ नहीं ले जाया जा सकता, व्यक्ति धन और साधन इकट्ठा करने में लगा है। इसका दुष्परिणाम यह है कि पूरी दुनिया अशांत मन से जीने वाले लोगों से भर गई है।एक सर्वेक्षण के अनुसार 100 में से 80 लोगों को रात को नींद ठीक से नहीं आती। उनकी जिंदगी निरंतर चिंताओं और तनाव से घिरी रहती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट बताती है कि मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं न केवल व्यक्ति की सेहत बल्कि पूरी मानवता और विश्व की अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरा बन चुकी हैं।आज दुनिया में लगभग 1 अरब लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।वर्ष 2021 में करीब 7 लाख लोगों ने अवसाद और चिंता के कारण आत्महत्या कर ली।हर दिन नई-नई बीमारियां मानसिक तनाव और अवसाद की वजह से जन्म ले रही हैं।भारत की स्थिति और भी चिंताजनक है।मानसिक बीमारियों से सबसे ज्यादा महिलाएं प्रभावित हैं। लगभग 58 करोड़ महिलाएं यह भी नहीं जानतीं कि वे क्यों जी रही हैं।भारत सरकार मानसिक स्वास्थ्य पर कुल स्वास्थ्य बजट का केवल 2% खर्च करती है।लगभग 92% लोगों को मानसिक रोगों के इलाज की कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।10.6% महिलाएं गंभीर मानसिक स्वास्थ्य विकारों से जूझ रही हैं, लेकिन उन्हें इलाज और सहारा नहीं मिलता।दुख की बात यह है कि भारत में अवसाद से ग्रसित व्यक्ति को अक्सर ‘पागल’ करार देकर समाज से दूर कर दिया जाता है। लोग उनकी कमजोरी पर हंसते हैं, जबकि अन्य देशों में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर गंभीर प्रयास हो रहे हैं।71% देशों ने मानसिक बीमारियों के लिए अलग अस्पताल और आपातकालीन सेवाएं विकसित की हैं।39 देशों ने मानसिक स्वास्थ्य को राष्ट्रीय प्राथमिकता घोषित किया है।लगभग 80% देशों में मानसिक स्वास्थ्य के उपचार में सफलता मिल रही है।इसके विपरीत भारत में अब भी मानसिक बीमारियों को सामाजिक कलंक मान लिया जाता है। इलाज और पुनर्वास की कोशिशें बहुत कम हैं।आज सबसे बड़ी चुनौती है—मनुष्य को फिर से मन की शांति लौटाना। यह तभी संभव है जब समाज मानसिक स्वास्थ्य को उतनी ही गंभीरता से ले, जितनी शारीरिक स्वास्थ्य को दी जाती है। सरकार को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।क्योंकि जिस दिन हम समझ लेंगे कि मन की शांति ही सबसे बड़ा धन है, उसी दिन से हम एक स्वस्थ, संतुलित और शांत समाज बना सकेंगे/ अजामिल

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