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गुरुवार, 25 सितंबर 2025
रामकथा पर आधारित रामलीला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि लौकिक-अलौकिक संस्कारों को सुरक्षित रखने का प्रयास है। कहा जाता है कि सनातन धर्म के शेष अवशेषों को बचाए रखने में रामलीला ने हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसका मूल उद्देश्य मनुष्य को संस्कारित कर समाजोपयोगी बनाना और भक्ति के माध्यम से शांति व मर्यादा का संदेश देना रहा है।रामलीला केवल अध्यात्म ही नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का भी आधार बनी। भक्त कवियों ने इसे लोकजीवन और मानव आचरण से जोड़ा। तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना के बाद स्वयं अनुभव किया कि यदि रामकथा को जनता के बीच न ले जाया जाए तो उसका कोई महत्व नहीं। इसलिए उन्होंने लीलाओं के माध्यम से आदर्श व्यक्ति, समाज और राज्य की मर्यादाओं को सामने रखकर बिखरते समाज को संभाला।आज जब नैतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है, तब रामलीला की प्रासंगिकता पहले से अधिक महसूस होती है।प्रयाग की परंपराप्रयाग धार्मिक आयोजनों के लिए प्रसिद्ध है, पर यहाँ की रामलीला विशेष पहचान रखती है। इसका उद्देश्य केवल भगवान श्रीराम के जीवन का प्रसार ही नहीं, बल्कि इसे सांस्कृतिक धरोहर के रूप में बचाए रखना भी है।प्रयाग में रामलीला कब शुरू हुई, इसका प्रामाणिक दस्तावेज नहीं मिलता, पर 19वीं शताब्दी से यहाँ विभिन्न स्थानों पर रामलीलाओं के उल्लेख मिलते हैं। अंग्रेज अधिकारी भी कभी इन आयोजनों का आनंद उठाते और सहयोग करते थे। बाबा हाथीराम और बेनीराम की रामलीलाएँ दक्षिणी क्षेत्र में सैकड़ों सालों से चल रही हैं। 1879 से दारागंज की रामलीला प्रसिद्ध है, जबकि कटरा और अन्य क्षेत्रों में भी समय-समय पर नई रामलीलाओं का सूत्रपात हुआ।1909 के गजेटियर के अनुसार, उस समय प्रयाग में 20 स्थानों पर रामलीलाएँ होती थीं। आज यह संख्या बढ़कर लगभग 100 हो गई है।हाईटेक रामलीलाटीवी धारावाहिक रामायण के बाद रामलीलाओं में तकनीकी प्रयोग बढ़ा। पथरचट्टी और पजावा जैसी मंडलियों ने करोड़ों रुपये खर्च कर हाईटेक मंचन शुरू किया, जहाँ क्रेन से उड़नखटोला, लिफ्ट से उड़ते हनुमान और रोशनी-साउंड इफेक्ट दर्शकों को आकर्षित करते हैं। लेकिन इस चकाचौंध में भाव और संदेश गौण हो जाते हैं। कई मंडलियाँ धारावाहिक के साउंडट्रैक तक का सीधा प्रयोग करती हैं, पर मौलिकता का अभाव है।इसके विपरीत, रेलवे कर्मचारियों और कुछ स्थानीय मंडलियों की रामलीलाएँ अब भी परंपरा से जुड़ी हैं—जहाँ रंगे पर्दों, चौपाइयों और संवादों से मंच सजता है।निष्कर्षकुल मिलाकर प्रयाग की रामलीला दो धाराओं में बँटी दिखाई देती है—एक ओर पारंपरिक रूप, दूसरी ओर हाईटेक प्रयोग। दोनों ही प्रयास महत्वपूर्ण हैं; पर यह सोचना ज़रूरी है कि करोड़ों खर्च कर यदि रामकथा का मूल संदेश न पहुँचे, तो क्या यह सही दिशा है?रामलीला का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज में मूल्य, मर्यादा और आस्था को जगाना है। यदि यह ध्यान में रखा जाए तो परंपरा और आधुनिकता का संगम ही प्रयाग की रामलीला को सही मायने में विश्वप्रसिद्ध बनाएगा।
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