शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

सच तो यह है कि कोलकाता यानी बंगाल की दुर्गा पूजा विश्वविख्यात है। यहां के समाज के लोग—धर्म, जाति या वर्ग कोई भी क्यों न हों—इस उत्सव में पूरे उत्साह के साथ शामिल होते हैं।हर साल लगभग 500 से अधिक स्थानों पर दुर्गा पूजा का भव्य आयोजन होता है।समाज के सामान्य लोग और सम्पन्न वर्ग दोनों ही मिलकर उदारतापूर्वक आर्थिक सहयोग देते हैं।कई नामी कलाकार अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा दुर्गा पूजा में समर्पित करते हैं।फिल्म और रंगमंच से जुड़े कलाकार भी पूरे विधि-विधान से मां दुर्गा का पूजन करते हैं।पूरे कोलकाता में इस दौरान उल्लास का वातावरण रहता है। लाखों लोग पंडालों में पहुंचकर एक-दूसरे से मिलते हैं और सामाजिक एकता का परिचय देते हैं।---प्रयागराज (इलाहाबाद) में दुर्गा पूजा की परंपरा प्रयागराज में भी बंगाली समुदाय के सहयोग से दुर्गा पूजा भव्य रूप में मनाई जाती है।यहां लगभग 100 स्थानों पर पंडाल सजाए जाते हैं।मां दुर्गा की प्रतिमाएं प्रायः कोलकाता से मंगाई जाती हैं और प्राण-प्रतिष्ठा के बाद सात दिन तक पूजन-अर्चन होता है।सुबह-शाम आरती, भोग और मंत्रोच्चार के बीच भक्तजन मां दुर्गा से अपने परिवार के लिए आशीष मांगते हैं।अधिकांश पूजा बांग्ला भाषा में होती है, जिससे सांस्कृतिक जुड़ाव गहरा हो जाता है।---सांस्कृतिक परंपराएं: अतीत और वर्तमान पहले समय में दुर्गा पूजा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव भी हुआ करती थी।पंडालों में मंच बनाए जाते थे और वहां प्रतिदिन नाटक होते थे।कलाकार वही होते थे जो आयोजन समिति से जुड़े रहते थे।बच्चों और नए कलाकारों को भी इसमें अवसर दिया जाता था।रात 12–1 बजे तक लोग नाटक देखने उमड़ते और पूजा-पंडालों में रौनक बनी रहती थी।लेकिन अब यह परंपरा बदल चुकी है। नाटकों की जगह आर्केस्ट्रा और मनोरंजन के अन्य साधन आ गए हैं।---नए बदलाव और चुनौतियां समय के साथ दुर्गा पूजा में कई नए स्वरूप भी सामने आए हैं:पूजा-पंडालों के आसपास अस्थायी दुकानों की भरमार हो गई है।रात देर तक खाने-पीने का बाज़ार चलता रहता है।कई जगहों पर सुरक्षा और व्यवस्था को लेकर भी चिंता उठने लगी है।ऐसे में आवश्यकता है कि इतने बड़े उत्सव को सुव्यवस्थित ढंग से डिजाइन किया जाए, ताकि कोई अनहोनी या अवांछित घटना इस पवित्र पर्व पर दाग न लगे।---प्रयागराज की ऐतिहासिक पहचान कर्नलगंज बारवारी दुर्गा पूजा सोसाइटी यहां की सबसे पुरानी है, जो 173 वर्षों से लगातार दुर्गा पूजा का आयोजन कर रही है।इस बार यहां शिवलिंग आकार का भव्य पंडाल बनाया गया है, जिसकी ऊंचाई लगभग 40 फीट है।पंडालों की सजावट और मूर्तियों की कला अब भी प्रायः कोलकाता के कलाकारों द्वारा की जाती है।---कोलकाता और प्रयागराज दोनों ही स्थानों की दुर्गा पूजा नवरात्रि के दौरान आस्था, भव्यता और सामाजिक एकता का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है।कोलकाता की पूजा विश्वविख्यात है और उसकी छाया प्रयागराज में भी दिखाई देती है।समय के साथ स्वरूप बदले हैं—सांस्कृतिक नाटक गायब हो गए, व्यापारिक गतिविधियां बढ़ गईं—लेकिन इसके बावजूद मां दुर्गा की आराधना और लोगों का उत्साह आज भी उतना ही गहरा है।दुर्गा पूजा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐसा सांस्कृतिक पर्व है जो सामाजिक एकता, कलात्मकता और परंपरा को जीवित रखता है।

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