शुक्रवार, 26 मई 2017

समानांतर की प्रस्तुति लीला नंदलाल की

जनसंस्कृति दिवस पर

समानांतर नहीं दिखाई

लीला नंदलाल की

इलाहाबाद की जानी-मानी नाट्यसंस्था समानांतर ने जन संस्कृत दिवस पर सुप्रसिद्ध कथाकार उपन्यासकार भीष्म साहनी की कहानी पर आधारित नाटक लीला नंदलाल की की सभी को मन मोह लेने वाली प्रस्तुति की । इस एकल प्रस्तुति में नवोदित अभिनेता धीरज गुप्ता ने पूरी उर्जा के साथ एक मंजे हुए कलाकार की तरह कथा के मुख्य पात्र के अलावा न जाने कितने पात्रों को जीवंत कर दिया और दर्शकों को अंत तक बांधे रखा । धीरज गुप्ता ने संवादों की अदायगी में बहुत से कलाकारों को कुछ इस तरह जिया जैसे नाटक के सभी पात्र उसी को लेकर बने हो । धीरज ने साबित कर दिया कि एक अभिनेता के रूप में उसमें काफी सामर्थ्य है और वह काफी कुछ कर सकता है ।

वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल रंजन भौमिक के निर्देशन में प्रस्तुत किए गए इस नाटक में भौमिक दादा ने जिंदगी की विसंगतियों और विकृतियों को बखूबी अपने अभिनेता के जरिए उजागर करने में सफलता पाई । लीला नंदलाल की एक व्यंग नाटक है जो बड़ी सच्चाई के साथ आज की व्यवस्था में हमारे सपनों को चूर-चूर होता हुआ दिखाता है और यह भी बताता है कि इंसान किस तरह  इस भ्रष्ट व्यवस्था मैं असमर्थ हो चुका है ।

इस नाटक की सबसे बड़ी खूबी यही थी  कि यह बहुत थोड़े से संसाधनों के बीच पूरी ताकत के साथ खेला गया और इसके संदेश को जहां चोट करनी थी यह संदेश कहां तक पहुंचा  । समानांतर ने यह भी साबित कर दिया इस नाटक के जरिए कि कोई जरुरी नहीं है कि बड़े तामझाम के बीच ही नाटकों की प्रस्तुति की जाए और लाखों रुपए खर्च करके केवल एक शो करके पैसे की बर्बादी की जाए । अनिल रंजन भौमिक अनुदानजीवी रंगकर्मी नहीं है । नाटक के दर्शक ही कमोबेश उनके रंगमंच को जीवित रखे हुए हैं और यही दर्शक अनिल रंजन भौमिक के रंगकर्म के आधार हैं । नाटकों के लिए अनिल रंजन भौमिक किसी बड़े अनुदान का इंतजार नहीं करते बल्कि छोटी सी सीमाओं में पूरी सूझ-बूझ और लगन के साथ नाटकों की प्रस्तुतियां करना उनकी अपनी नाट्य शैली का हिस्सा है जो बहुत से लोगों को प्रेरित करता है । कथ्य से लेकर प्रस्तुति तक अनिल रंजन  भौमिक का रंगमंच कुछ नए की तलाश करता चलता है शायद यही वजह थी कि लीला नंदलाल की नाटक में केवल एक अभिनेता को लेकर उन्होंने बहुत ही प्रभावशाली प्रयोग किया । इलाहाबाद के स्वराज्य विद्यापीठ के छोटे से सभागारनुमा जगह पर यह प्रस्तुति की गई जिसे लगभग 100 लोगों ने देखा और सराहा । इस प्रस्तुति ने यह बात भी साफ कर दी क़ि रंगकर्म की गति को बनाए रखने के लिए लगातार अच्छे रंगकर्म को करने की आवश्यकता है न क़ि सुविधाओं को जुटाने का बहाना लेकर समय बर्बाद करने की । अनिल रंजन भौमिक जमीन से जुड़े रंगकर्मी है इसलिए इन्हें अपने चारों तरफ मंच दिखाई देता है, जहां से खड़े होकर वह अपनी बात कह सकते हैं । अनिल रंजन भौमिक की नजर में बात बड़ी चीज है , बाकी तो बात को संप्रेषित करने का साधन मात्र है और कला इसी में है कि बात हर हाल में कहीं जाए ।

ऑल इंडिया न्यू थिएटर समानांतर के सभी सदस्यों और वरिष्ठ रंग निर्देशक अनिल रंजन भौमिक को इस शानदार प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई देता है और उम्मीद करता है कि संस्था ऐसी ही सार्थक प्रस्तुतियां करती रहेगी । धीरज गुप्ता को बहुत बहुत बधाई । बड़ी संभावना है इस अभिनेता के भीतर । विनम्रता इस अभिनेता का आभूषण बने और यह मेहनत से काम करता हुआ बहुत आगे तक जाए , हम यही कामना करते है ।

समीक्षक  अजामिल

सोमवार, 1 मई 2017

नाटक ईडिपस की शानदार प्रस्तुति

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इलाहाबाद में  ग्रीक नाटक  ईडिपस  की शानदार प्रस्तुति ****
केवल इलाहाबाद में ही मैंने ग्रीक नाटक ईडिपस की अलग-अलग  निर्देशकों द्वारा  निर्देशित लगभग सात प्रस्तुतिया देखी हैं । इन प्रस्तुतियों में नई बुनावट का अभाव तो था ही , ये एक दूसरे से भी बहुत प्रभावित रही । कमोबेश परिवर्तन के साथ इन्हें पेश किया गया जबकि अच्छे नाटकों में समयानुकूल निर्देशक परिवर्तन करते रहते हैं , नई तकनीक को शामिल करते हैं  , संगीत बदला जाता है लेकिन यह सब तो तब होता है जब समर्थ निर्देशक नाटक को नए ढंग से डिजाइन करने में सक्षम हो ।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय , नई दिल्ली से प्रशिक्षित वरिष्ठ रंगकर्मी डॉक्टर विधु खरे ने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा की इलाहाबाद शाखा मैं प्रशिक्षित फिल्म एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स के छात्रों को लेकर उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के बीमार प्रेक्षागृह मैं ग्रीक नाटक ईडिपस की प्रस्तुति बिल्कुल नई डिजाइन के साथ की । इस प्रस्तुति का संगीत काफी रिच था और ईडिपस के समय को काफी उत्तेजना और हंगामे के साथ रेखांकित करता था । नाटक के संगीत ने समयानुकूल वातावरण का निर्माण मंच पर सफलतापूर्वक किया । संगीत की मात्रा काफी सघन थी बावजूद इसके किसी ने भी संवादों के ठीक से सुनाई न देने की शिकायत नहीं की और संवाद जितने सुनाई दिए उतने से ही नाटक को देखने का आनंद उठा लिया ।
नाटक के अनुवाद की भाषा उर्दू थी । नाटक के पात्रो की जुबान पर यह भाषा पूर्वाभ्यास की कमी के कारण रवाँ नहीं हो पाई थी बावजूद इसके कलाकारों ने वातावरण को सजीव बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । मुश्किल यह है कि उर्दू दिमाग से नहीं बोली जाती , दिल से बोली जाती है , इसलिए भी संवादों की अदायगी और ज्यादा मेहनत की मांग कर रही थी । हां विधु खरे ने नाटक को  डिजाइन बहुत अच्छा किया था  । एक मौलिक परिकल्पना आरंभ से अंत तक नाटक मैं तैरती हुई दिखाई दे रही थी और दर्शकों को बांधे हुए थी । एकदम प्रोफेशनल काम किया था विधु खरे ने । प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित निर्देशकों के काम में कहां और क्या अंतर होता है , यह इस प्रस्तुति में साफ दिखाई पड़ रहा था ।
सुजॉय घोषाल का प्रकाश संचालन हमेशा की तरह लुभा लेने वाला था । सुजोय घोषाल अपने प्रकाश संचालन में प्रकाश की भाषा और आवश्यकता से अधिक ध्यान दृश्य की सुंदरता की ओर आकर्षित करते हैं  । गीमिक्स का खेल उन्हें बहुत पसंद है  । LED लाइट्स ने उनके काम को आसान और सीमित कर दिया है  । लाल और नीली रोशनी उन्हें बहुत प्रिय है और उनका सारा जादू इन्ही दो रोशनी के इर्द गिर्द रहस्य पैदा करता है । सुजॉय घोषाल एक प्रयोगधर्मी रंगकर्मी हैं  । लोग उनसे बहुत उम्मीद करते हैं । विधु खरे जैसी निर्देशिका  के साथ  उनके काम की खिलावट दोबारा हो जाती है ।
अंत में इतना ही कहना होगा क़ि यह प्रस्तुति बहुत दिनों तक लोगों के दिल और दिमाग पर छाई रहेगी । डॉक्टर विधु खरे को अगर अवसर मिलता रहे तो निश्चय ही रंगकर्मियों को उनके हर हस्तक्षेप पर गर्व होगा  । उनके भीतर एक समर्थ निर्देशक मौजूद है जिसे बस अवसर की तलाश है  ।
ऑल इंडिया न्यू थिएटर इस प्रस्तुति के लिए उन्हें बहुत-बहुत बधाई और सभी कलाकारों को उनके भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाए देता है ।
समीक्षक / अजामिल
** सभी चित्र वरिष्ठ छायाकार विकास चौहान के सौजन्य से