शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

इलाहाबाद का समकालीन रंगमंच आलेख अजामिल

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आलेख / अजामिल

**समकालीन रंगमच

  की चुनौतियां
मौजूदा हिंदी रंगमंच एक लंबी अनुभव यात्रा से गुजरने के बावजूद आज भी तमाम मुश्किलों का सामना कर रहा है। लगातार रंगकर्मियों के संघर्ष के बाद भी अनेक  चुनौतियां रंगकर्मियों के सामने बनी हुई है  । रंगकर्मी कहीं धन के अभाव में हताश निराश हो रहे हैं तो कहीं सर्व सुविधाजनक प्रेक्षागृह के न होने से रंगकर्म की निरंतरता में बाधा आ रही है । छोटे बड़े शहरों में रंगकर्मियों के पास पूर्वाभ्यास के लिए जगह तक नहीं है । रंगकर्मियों के प्रशिक्षण के लिए भी कोई समुचित व्यवस्था नहीं है । ये कुछ मूलभूत चुनौतियां है जिनका सामना करने और इनके निदान खोजने में ही रंगकर्मियों की सारी ऊर्जा नष्ट हो रही है । 80 के दशक तक हिंदी रंगमंच का स्वरूप पूरी तरह बना नहीं था । हिंदी रंगकर्म का सारा कार्य शौकिया रंगकर्मी किया करते थे । ये वे रंगकर्मी थे जो रंगकर्म के अलावा जीविका के लिए नौकरी करते थे या किन्ही दूसरे पेशे से जुड़े हुए थ । आज हालात बदल गए हैं । आज के रंगकर्मी रंगकर्म को रोटी रोटी से भी  जोड़ कर देख रहे हैं

। इसे ये एक व्यवसाय के रूप में विकसित करना चाहते हैं और रंगकर्मियों को इसमें फिलहाल सफलता मिलती नहीं दिखाई दे रही है । इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि आज मनोरंजन के तमाम साधन मौजूद हैं । रंगमंच दर्शकों की  जरूरत में  अभी तक शामिल नहीं हो पाया है । सिनेमा टेलीविजन और मोबाइल फोन पर मनोरंजन के बहुत से आयाम मौजूद होने के कारण दर्शकों की रुचि नाटक देखने पर बहुत ज्यादा नहीं दिखाई दे रही है । कुछ महानगरों को छोड़ दें तो बहुत से शहरों और कस्बों में होने वाली नाट्य प्रस्तुतियों में दर्शकों की कमी रंगकर्मियों का मनोबल तोड़ रही है ।

एक और बड़ी मुश्किल है  क़ि रंगकर्मियों की ओर से भी दर्शकों को जुटाने के प्रयास भी नहीं हो रहे हैं । हिंदी रंगकर्म का आधार दर्शकों का अनुराग नहीं रहा बल्कि यह सरकार के अनुदान पर किसी तरह चल रहा है । दुखद है कि रंगकर्म आज अधिकतर उन रंगकर्मियों के हाथ में है जो सरकारी अनुदान लाने में सक्षम है । प्रतिभा और योग्यता का कोई मतलब नहीं रह गया है । हिंदी रंगमंच को सरकारी अनुदान ने जितना धक्का पहुंचाया है , उसकी भरपाई आगामी कई वर्षों तक नहीं हो पाएगी । रंगकर्मियों की सारी ऊर्जा अनुदान जुटाने में खर्च हो रही है । जैसे तैसे हिंदी के नाटक खेले जा रहे हैं और रंगकर्मियों को इस बात की चिंता भी नहीं है कि उन्हें कितने दर्शक देखते हैं । हिंदी रंगमंच में दर्शकों को अपने साथ जोड़ने की कोई कोशिश भी नहीं की , नतीजा यह हुआ क़ि मनोरंजन के दूसरे माध्यमों की तरह रंगमंच के गुण ग्राहक नहीं बने । नवजागरण काल की कुछ अपवाद प्रस्तुतियों को छोड़ दें तो रंगमंच ने दर्शकों के साथ उनकी समस्याओं को लेकर वैसी साझेदारी सुनिश्चित नहीं की जैसे कि इस माध्यम से उम्मीद की जाती है    . . । रंगकर्मियों की उदासीनता  ने भी रंगकर्म का बहुत नुकसान किया।  नतीजा यह हुआ क़ि ऐसा दर्शक वर्ग तैयार नहीं हो पाया जो आगे बढ़कर रंगमंच को अपने पैरों पर खड़े होने मैं मदद करता और उसकी जिम्मेदारी उठाता  । रंगकर्म का आधार जब तक दर्शक नहीं होंगे तब तक रंगकर्म अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाएगा और रंगकर्मियों की चुनौतियां बनी रहेगी  । रंगकर्मियों के जुनून और सरकारी अनुदान के भरोसे नाटक को बहुत दिनों तक नहीं खींचा जा सकता  । रंगकर्म उत्सव है और इसे उत्सव की शर्तों पर भी करना होगा।  रंगकर्मी  कभी खुद से यह सवाल नहीं पूछते  कि आखिर वह रंगकर्म क्यों कर रहे हैं  ।  रंगकर्म करने का  ठोस कारण होना चाहिए । इसमें कोई संदेह नहीं कि देश भर में हिंदी रंगमंच से जुड़े हजारों हजार रंगकर्मी अपने अपने स्तर पर सक्रिय भूमिका में है और रंगकर्म को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं । जन आंदोलनों में भी इनकी भूमिका को देखा जा सकता है  । रंगकर्मी यह भी चाहते हैं कि रंगकर्म उनकी रोटी रोटी का भी आधार बन जाए । इसमें गलत कुछ भी नहीं है  । रंगकर्मियों को उनकी मेहनत का फल मिलना ही चाहिए लेकिन उसके लिए अलग तरह की कोशिशें करनी होंगी और दर्शकों का विश्वास जीतना होगा । यह बताना होगा कि दर्शक उनके नाटक देखने के लिए प्रेक्षागृह तक क्यों आए । रंगमंच जन चेतना का संवाहक है । समाज के बिना उसका होना ना होने के बराबर है । रंगमंच सिर्फ कला नहीं है । इसमें विचार भी महत्वपूर्ण है और समाज में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन भी । रंगमंच बहुत जिम्मेदारी का काम है और समाज से सीधे सीधे जुड़ता है इसलिए इसके सामने चुनौतियां भी कुछ अलग तरह की होती हैं   । आज समाज और कला को अलग अलग करके देखा जा रहा है जिसके कारण तरह तरह के संकट भी पैदा हो रहे है । वहीं यह भी बहुत जरूरी है कि जल्दी ही वे रास्ते निकाले जाएं जिससे हिंदी रंगमंच का स्वरूप पूरी तरह न सही तो इसमें व्यवसायिकता का समावेश इतना जरूर हो क़ि रंगकर्मी आत्मसम्मान से भरा जीवन जी सकें । कुछ रंगकर्मी मानते हैं कि ऐसा तभी होगा जब हिंदी रंगमंच मैं निपुणता दिखाई पड़ेगी  । प्रोफेशनलिज्म के बिना मनोरंजन के बाजार में जगह बनाना बहुत मुश्किल होगा।  रंगकर्मियों को पूरी पूरी कोशिश करना होगा क़ि वे तार्किक तरीके से बाजार का हिस्सा बने । इसमें कोई हर्ज नहीं है  । प्रस्तुतियां अगर बाजारु नहीं है तो बाजार  रंगमंच की ताकत ही बनेगा।  रंगकर्मी समाज का ही हिस्सा है अगर  रंगकर्मी के अस्तित्व पर ही संकट मंडराता रहेगा तो वह सामाजिक सरोकारों के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह कैसे करेगा । सरकारी अनुदान की राशि भले ही लाखों में हो लेकिन इस राशि के वितरण में रंगकर्मियों के बड़े प्रतिशत को इसका यथोचित  लाभ नहीं मिल रहा है । इसके बावजूद  हिंदी रंगमंच पर लगातार नए प्रयोग हो रहे हैं लेकिन नए प्रयोगों को रंगमंच की लोकप्रियता का आधार नहीं बनाया जा सकता । इधर कुछ वर्षों से रंगकर्मी पारंपरिक लोक नाट्य की भी सुंदर प्रस्तुतियां कर रहे हैं । सरकार इसके लिए अलग से अनुदान भी उपलब्ध करवा रही है लेकिन इसकी प्रासंगिकता का मूल्यांकन अभी नहीं हो रहा है । इस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। इलाहाबाद का रंग जगत कमोबेश रंगकर्म के क्षेत्र में आज मुख्यधारा में बना हुआ है यहां के रंगकर्मी जब बाहर जाकर अपनी प्रस्तुतियां करते हैं तो उसकी धमक दूर दूर तक सुनाई देती है इलाहाबाद में वरिष्ठ रंगकर्मियों में प्रवीण शेखर अनिल रंजन भौमिक आलोक नायर जहां प्रयोगधर्मी रंगकर्मी के रूप में अपनी पहचान बना रहे हैं वही अतुल यदुवंशी का नाम लोकनाट्य की प्रस्तुतियों के लिए बड़े आदर से लिया जाता है महिलाओं में सुषमा शर्मा रितिका अवस्थी निर्देशन के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर रही है रेनू राज सिंह सफलता श्रीवास्तव प्रतिमा श्रीवास्तव प्रिया मिश्रा सोनम सेठ आदि अनेक अभिनेत्रियां इलाहाबाद के रंग जगत में आज चर्चा में हैं अभिनेताओं मैं राकेश यादव धीरज कुमार गुप्ता सन्नी गुप्ता आदि बहुत से कलाकारों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है इसे देखते हुए कहा जा सकता है की रंगकर्म के विकास की गति भले ही धीमी हो रंगकर्मियों द्वारा समस्याओं के निदान की जद्दोजहद पूरी आन-बान-शान के साथ चल रही है जो बेहद सुखद है।

** अजामिल


गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

नाटक दामाद की खोज की प्रस्तुति

**पिछले  दिनो
*बिगफुट और थिएटर क्लब इलाहाबाद की प्रस्तुति
*दामाद एक खोज*
हास्य और व्यंग नाटकों का मंचन मुश्किल काम है लेकिन आज के दौर में जबकि हमारी तनाव भरी जिंदगी में हंसने हंसाने के मौके लगातार कम होते जा रहे हैं ऐसे भी बहुत जरूरी हो गया है इस मुश्किल काम को लगातार अंजाम दिया जाए और कोशिश की जाए कि लोग हंसे और उनके जीवन कुछ वक्त के लिए ही सही शांति और राहत मिले हास्य व्यंग नाटकों का निर्देशन भी आसान काम नहीं है कहा तो यहां तक जा सकता है कि किसी को आसानी से बड़ा पुणे का दूसरा कोई काम नहीं है तनाव भरी जिंदगी में हंसी घोल देना किसी व्यक्ति को जीवन दे देने के समान है पिछले दिनों इलाहाबाद में इलाहाबाद की जानी-मानी दो नवोदित नाट्य संस्था बिगफुट और थिएटर क्लब इलाहाबाद ने कार्यशाला में तैयार किए गए हास्य व्यंग्य नाटक दामाद एक खोज की बड़ी मनोरंजक प्रस्तुति की युवा निर्देशिका मीनल के निर्देशन में पेश किए गए इस नाटक में  मीनल ने जिंदगी की  विसंगतियों और विकृतियों को परोस कर हमारे लिए हंसने के अवसर तलाश किए दर्शकों ने नाटक का भरपूर मजा लिया और सबसे बड़ी बात यह थी कि तालियां सही जगह पर बजाई इस नाटक की कथावस्तु मैं किस्म-किस्म के दामादों का इंटरव्यू लड़की के बाप ने किया इन दामादों के माध्यम से समाज के कुछ वर्ग पर तंज किया गया नाटक के मंच पर निर्देशिका मीनल ने बड़ी बेबाकी से रंगकर्मियों को भी अपने निशाने पर लिया और उनकी भी कमजोरियां उजागर की यह साहस बहुत कम मंच पर देखने को मिलता है दूसरे पर व्यंग करना आसान है लेकिन जब आप खुद पर व्यंग करते हैं हेलो आपको सच्चे और ईमानदार कलाकार स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं करते इस नाटक मैं नए कलाकारों को उनकी गलतियों और भूलों के साथ देखना बिल्कुल नया अनुभव था जो सच मानिए बहुत अच्छा लग रहा था कलाकारों ने जो किया उसकी तो सराहना की ही जानी चाहिए जो नहीं किया वह भी काबिले तारीफ था हास्य और व्यंग्य नाटक सही समय पर प्रतिक्रिया देने का मजेदार खेल है और इस खेल में सभी कलाकार मंच पर सफल हुए और उन्होंने यह भरोसा दिलाया कि उन्हें अवसर मिले तो वह बेहतरीन काम कर सकते हैं मीनल को हास्य और व्यंग नाटकों की प्रस्तुति में विशेषज्ञता हासिल करनी चाहिए वह ऐसा कर सकती है इस नाटक का मजेदार पहेली इस नाटक का अनाउंसमेंट था जिसमें उद्घोषक ने बहुत प्यार से दर्शकों को बताया क्यों चाहे तो अपना मोबाइल प्रेक्षागृह में खुला रख सकते हैं मोबाइल पर बात वह जरूर करें अपने काम का नुकसान ना करें फोटोग्राफर्स के लिए अनाम सर ने कहा कि अगर फोटोग्राफर को मंच के नीचे से फोटो लेने में कोई असुविधा हो रही हो तो वह मंच पर चढ़कर आराम से फोटो बना सकता है इस विरोधाभासी अनाउंसमेंट का इतना अच्छा असर हुआ की प्रेक्षागृह में एक बार भी मोबाइल नहीं बजा और न कोई फोटोग्राफर मंच पर चढ़ा नाटक की शुरुआत बिल्कुल एक अलग अंदाज में हुई और हमारी समझ में आ गया कि है नाटक हमें कहां ले जाएगा इस नाटक में कुछ वरिष्ठ कलाकारों ने भी शिरकत की उनका प्यार नए कलाकार उसको मिला पर एक नई परंपरा की शुरुआत हुई ऑल इंडिया न्यू पूरे मन से सभी कलाकारों को मीनल को और संस्था के सभी सक्रिय सदस्यों को बहुत-बहुत बधाई देता है ऐसी प्रस्तुतियां बहुत जरूरी है क्योंकि यह प्रस्तुतियां दर्शक तैयार करती है एक बार दर्शक बन गए तब नहीं कुछ भी दिखाइए वह बहुत प्यार से उसे देखेंगे और रंगकर्मियों का सम्मान करेंगे
समीक्षा और चित्र अजामिल

नाटक सखाराम बाईंडर की प्रस्तुति

**नाटक पिछले दिनों
**सखाराम बाईंडर  मंच पर का अनुवादिका श्रीमती सरोजिनी वर्मा द्वारा मराठी के वर्चस्वी नाटककार श्री विजय तेंडुलकर की अत्यंत विवादस्पद और बहुचर्चित कृति ‘सखाराम बाइंडर’ की सशक्त और प्राणवान प्रस्तुतियों ने देश की लगभग सभी भाषाओं के रंगमंच को नई दिशा और नया सोच प्रदान किया है इस नाटक में दांपत्य जीवन की गोपनीय नैतिकता का साहसपूर्ण ढंग से पर्दाफाश किया गया है है। सरकारी नियंत्रण को चुनौती देकर उच्चतम न्यायालय से लेखकीय अभिव्यक्ति के आधार पर मान्यता पाने वाला अपने ढंग के इस अकेले और अनूठे नाटक‘सखाराम बाइंडर’ को इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि वह गलाजत से भरी दिखावटी संभ्रांतता को पहली बार इतने सक्षम ढंग से चुनौती देता है। रटे-रटाये मूल्यों को सखाराम ही नहीं इस नाटक के सारे पात्र अपनी पात्रता की खोज में ध्वस्त करते चले जाते हैं। जिन नकली मूल्यों को हम अपने ऊपर आडम्बर की तरह थोप कर चिकने-चुपड़े बने रहना चाहते है, उसे सही-सही इस आइने में निर्ममता से उघडता हुआ देखते हैं। ‘सखाराम बाइंडर’ वही आइना है। भाषा के स्तर पर सारे पात्र बड़ी खुली और ऐसी बाजारुपन से संयुक्त भाषा का प्रयोग करते हैं जिन्हें हमने अकेले-दुकेले कभी सुना जरुर होगा। किन्तु उसे अपने संस्कारिता का अंश मानने में सदैव कतराते रहे हैं। पुरे नाटक में कथावस्तु की विलक्षणता न होते हुए भी पात्रों का आपसी संयोजन भाषा के जिस स्तर पर नाटककार ने किया है वही नाटकीयता को दरकिनार कर जीवन के सत्य को पूरी ईमानदारी से सामने लाता है पिछले दिनों इसी नाटक सखाराम बाईंडर की विचारोत्तेजक प्रस्तुति बेहद सादगी के साथ इलाहाबाद में लगभग 30 वर्षों के बाद वरिष्ठ रंग निर्देशक अफजल खान के निर्देशन में की गई उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में प्रस्तुत किए गए इस नाटक ने दर्शकों को एक नया अनुभव और जीवन के अनकहे सच को साझा करने के लिए प्रेरित किया सबसे अच्छी बात यह थी की नाटक को मंच तक लाने की पूरी परिकल्पना इतनी सहज और कसी हुई थी कि नाटक की कथावस्तु को कहीं से भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा हिंदी रंगमंच पर इस नाटक की प्रस्तुति वैसे भी जोखिम भरा काम है परंतु अफजल खान ने इसे पूरे साहस के साथ अपने हाथ में लिया और इसे कर दिखाया नाटक में जिस तरह के कंपोजीशन बनाए गए वे नाटक की प्रस्तुति को एक नया व्याकरण दे रहे थे इस नाटक के सभी पात्रों ने अभिनय के दौरान न सिर्फ स्वयं को अपने से मुक्त किया बल्कि अपनी भूमिका में दाखिल होने में सफलता प्राप्त की खासतौर पर महिला पात्रों ने अपनी भूमिका उम्मीद से ज्यादा बेहतर ढंग से निभाई यद्यपि महिला पात्रों के लिए इस नाटक की चुनौती भरी भूमिकाओं में परकाया प्रवेश बहुत मुश्किल था परंतु इन्होंने इसे संभव कर दिखाया रेनू राज सिंह और प्रतिमा वर्मा दोनों वरिष्ठ रंग अभिनेत्रियां है और यह दोनों ही पूरी समझ के साथ आंखों से बोलना जानती है इसीलिए यह दोनों अभिनेत्रियां अपनी भूमिकाओं को पूरी शिद्दत से जी सकी नाटक के अन्य पात्रों ने मुख्य पात्रों को बहुत अच्छे ढंग से सपोर्ट किया संवाद अदायगी मैं कलाकारों की आवाज बेशक जरूरत से कुछ कम थी जिसके कारण संवाद को सुनने में कहीं-कहीं असुविधा हुई बावजूद इसके सभी पात्रों ने बिना किसी अतिरिक्त उत्तेजना के अपनी भूमिका निभाई और सफलता पाई सखाराम बाईंडर एक ऐसा नाटक है जिस की प्रस्तुति के लिए निर्देशक का संवेदनशील होना बहुत जरूरी है सभी यह नाटक दर्शकों तक अपने संदेश को ले जा सकेगा इस प्रस्तुति में संदेश को अफजल खान पूरे सम्मान के साथ दर्शकों के सामने रख सके संगीत और बेहतर किया जाना चाहिए वहीं प्रकाश परिकल्पना मैं भी अभी काफी गुंजाइश ह इसमें कोई संदेह नहीं  35 साल बाद फिर से प्रस्तुत हुआ नाटक सखाराम बाईंडर पहले से काफी बेहतर रहा  ** समीक्षक अजामिल

सोमवार, 2 अप्रैल 2018

नौटंकी पंच परमेश्वर की प्रस्तुति

**स्वर्ग रंगमंडल ने की प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी पंच परमेश्वर पर आधारित नौटंकी की शानदार प्रस्तुति
इलाहाबाद की लोकनाट्य और लोक संस्कृति को समर्पित संस्था स्वर्ग रंग मंडल ने मुंशी प्रेमचंद की सुप्रसिद्ध कहानी पंच परमेश्वर पर आधारित और राजकुमार श्रीवास्तव द्वारा रूपांतरित नौटंकी की शानदार प्रस्तुति की जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में नौटंकी रसिक और रंग दर्शक उत्तर प्रदेश क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में उपस्थित हुए इस नौटंकी का निर्देशन वरिष्ठ रंगकर्मी और लोकनाट्य विशेषज्ञ अतुल यदुवंशी ने उतनी ही सादगी के साथ किया जितनी सादगी के साथ इस कहानी को मुंशी प्रेमचंद जी ने कलमबद्ध किया है सबसे अच्छी बात यह है कि यह नौटंकी रूपांतरण उन सभी जीवन मूल्यों को पूरी सहायता के साथ दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत करता है जिनकी चर्चा मुंशी प्रेमचंद ने कहानी में की है बिना किसी तामझाम के एक सहज परिकल्पित मंच पर नौटंकी के सभी पात्र पारंपरिक नौटंकी की सीमाओं को धीरे धीरे तोड़ते हैं और कहानी के अर्थ को सार्थक करते हुए एक नया विस्तार लेते हैं नौटंकी के निर्देशन में अतुल यदुवंशी किसी पात्र पर कोई दबाव नहीं बनाते बल्कि उन्हें अर्थ विस्तार के लिए पर्याप्त क्षेत्र प्रदान करते हैं निश्चय ही ऐसा करने में राज कुमार श्रीवास्तव की नौटंकी रूपांतरण ने उन्हें पूरा पूरा सहयोग किया है मुझे ऐसा लगता है कि समय के अनुसार नौटंकी को आज के संदर्भ में और अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए जरूरी है कि रुपांतर कार भी कहानी की सीमा से बाहर निकलकर सभी साधकों को नया अर्थ देने का प्रयास करें राज कुमार श्रीवास्तव ने काफी सीमा तक यह कोशिश की है और जिसे धारदार बनाने में अतुल यदुवंशी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है नौटंकी में सूत्रधार अपने अभिनय और अभिव्यक्ति में पूरी तरह सफल रहे नट नटी दोनों की आवाज नौटंकी के प्रसंगों के साथ पूरे उतार चढ़ाव के दर्शक को स्पर्श करती रही सभी महिला पात्रों ने डूब कर अभिनय किया सोनम सेठ एक बेहतरीन रंग अभिनेत्री है लेकिन  इस नौटंकी में  उन्हें जो भूमिका दी गई वह उनके  व्यक्तित्व के अनुकूल नहीं थी बावजूद इसके  सोनम सेठ  ने बड़ी बारीकी से  वह सब कुछ निकाल दिया और किया  जो  उनका चरित्र  डिमांड करता था और सोनम सेठ को  यथोचित  सराहना भी मिली अन्य सभी पात्र इस बेहतरीन नौटंकी  के बेहतरीन पेच पुर्जे साबित हुए सभी ने अपनी भूमिका पूरी शिद्दत के साथ निभाई और नौटंकी को सब तरफ से कैसे रहे अतुल यदुवंशी जब नौटंकी करते हैं तो नौटंकी को नाटक की तकनीक से अलग नहीं रखते नौटंकी परंपरा और नाट्य परंपरा का मिलाजुला स्वरूप उनकी नौटंकी में देखने को मिलता है मनोरंजन को अतुल यदुवंशी नौटंकी की पहली शर्त मानते हैं कोई गंभीर बात कहने से पहले अतुल यदुवंशी अपने दर्शकों को पूरी तरह रिलैक्स करते हैं अपने दर्शकों को वह स्वतंत्रता देते हैं कि वह नौटंकी के कंटेंट के बारे में अपने तरीके से सोचें अतुल यदुवंशी नौटंकी में कोई ऐसी बात नहीं करते जिससे उनका दर्शक किसी तरह के तनाव में आए इसके स्थान पर अतुल संवाद की संभावनाएं तलाश करते हैं जो कि नौटंकी को फिलहाल उनका योगदान कहा जा सकता है पंच परमेश्वर नौटंकी में सेट नहीं था इसकी कोई आवश्यकता भी महसूस नहीं हुई लेकिन नौटंकी के पारंपरिक संगीत में माहौल को जीवंत कर दिया था सच कहा जाए तो पंच परमेश्वर नौटंकी की शर्तों पर पूरी तरह खरी उतरती है और यह बताती है कि आने वाला समय मनोरंजन के सिलसिले में एक बार फिर अपनी जमीन के साथ जुड़ने वाला है और नौटंकी नौटंकी नहीं रह जाएगी बल्कि वह तमाम दृश्य कलाओं का आधार बनेगी रंगकर्मियों में जमीन से जुड़कर दोनों हाथ ऊपर उठाकर पूरा आकाश समेट लेने की आकांक्षा दिखाई दे रही है और नौटंकी की तरफ उनकी आस्था फिर वापस हो रही है यह सुखद है ऑल इंडिया न्यू थिएटर पंच परमेश्वर नौटंकी के सभी कलाकारों निर्देशक और नौटंकी रूपांतर कार को इस सफल प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई देता है हमारे विश्वास है कि स्वर्ग रंगमंडल नौटंकी की जीवंत वापसी के लिए ही संघर्ष नहीं कर रहा है बल्कि नई सोच के साथ नई परंपराएं भी बना रहा है स्वर्ग रंगमंडल की पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई और ढेर सारी शुभकामनाए।
** अजामिल ं
सभी चित्र विकास चौहान

रविवार, 1 अप्रैल 2018

नौटंकी कफ़न की शानदार प्रस्तुति

××स्वर्ग रंगमंडल ने की नौटंकी कफन की शानदार प्रस्तुति
इलाहाबाद की सुप्रसिद्ध नाट्य संस्था स्वर्ग रंगमंडल ने अमर कथा कार मुंशी प्रेमचंद की विश्व प्रसिद्ध कहानी कफन की नौटंकी शैली में उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में शानदार प्रस्तुति की .. इस नौटंकी का निर्देशन वरिष्ठ रंगकर्मी एवं लोकनाट्य विशेषज्ञ अतुल यदुवंशी ने किया साहित्य का बहुत बड़ा अनुरागी वर्ग इस कहानी से अच्छी तरह परिचित है कहानी के पात्र घीसू माधव के जरिए यह कहानी मानवीय संवेदनाओ की सीधी सच्ची तस्वीर हमारे सामने उजागर करती है इस कहानी का नौटंकी रूपांतरण बहुचर्चित रूपांतरकार राज कुमार श्रीवास्तव ने  किया है. यह कहानी  साफ तौर पर यह स्पष्ट करती है कि आदमी परिस्थितियों का गुलाम हो जाता है अतुल यदुवंशी एक प्रयोगधर्मी रंगकर्मी हैं जो अपनी रंग परिकल्पना में नौटंकी की परंपरा का सम्मान भी करते हैं और नए प्रयोगों के जरिए नौटंकी को आज के दर्शकों की रूचि के अनुकूल भी कलात्मकता देते चलते हैं जिसके कारण दर्शकों को उसे स्वीकारने में आसानी भी होती है अतुल यदुवंशी ने अपनी परिकल्पना के अनुसार मंच पर कहानी का वातावरण पैदा करने में सफलता प्राप्त की नौटंकी मैं पारंपरिक रुप से नट नटी का उपयोग न करके अतुल यदुवंशी ने दो जोकर को सूत्रधार की भूमिका में प्रस्तुत किया इस प्रयोग ने नौटंकी में बहुत कुछ अनकहा कह दिया इस नौटंकी के बहुत से हिस्से काफी मार्मिक हो गए यह एक मुश्किल काम था जिसे  अतुल यदुवंशी ने पूरी  सहजता के साथ कर दिखाया नौटंकी में सभी पात्रों ने अपनी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया खास तौर पर घीसू माधव और बुधिया तीनों ही अपनी भूमिका मैं पूरी तरह सफल रहे अन्य सभी पात्रों ने नौटंकी को यथोचित गति प्रधान की पात्रों की वेशभूषा नौटंकी की कथावस्तु के बिल्कुल अनुकूल थी अतुल यदुवंशी ने नौटंकी में बहुत से कंपोजीशन बहुत नेचुरल पेश किए शराब की दुकान वाला हिस्सा ज़रूर थोड़ा कमजोर रहा सबसे अच्छी बात यह थी सूत्रधार और सभी मुख्य पात्रों की आवाज नौटंकी के अनुकूल थी कफन कहानी की मूल आत्मा और उसके दर्शन को यह नौटंकी बहुत सहजता से दर्शकों के सामने रखती है और हमें जीवन के सत्य के रूबरू करती है इस शानदार प्रस्तुति के लिए ऑल इंडिया न्यू थिएटर स्वर्ग रंगमंडल और इस नौटंकी की पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता है आमतौर पर कफन जैसी कहानियां नौटंकी के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती लेकिन अतुल यदुवंशी ने यह साबित कर दिया कि यदि गंभीरतापूर्वक प्रस्तुति की जाए तो कफ़न की कहानी भी लोगों के दिलों को झकझोर सकती है । इस नौटंकी प्रस्तुति की उद्घोषिका बहु चर्चित रंग अभिनेत्री और रंग निर्देशिका रितिका अवस्थी रही ।
×× अजामिल
सभी चित्र विकास चौहान

नौटंकी कफन की शानदार प्रस्तुति