गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

नाटक सखाराम बाईंडर की प्रस्तुति

**नाटक पिछले दिनों
**सखाराम बाईंडर  मंच पर का अनुवादिका श्रीमती सरोजिनी वर्मा द्वारा मराठी के वर्चस्वी नाटककार श्री विजय तेंडुलकर की अत्यंत विवादस्पद और बहुचर्चित कृति ‘सखाराम बाइंडर’ की सशक्त और प्राणवान प्रस्तुतियों ने देश की लगभग सभी भाषाओं के रंगमंच को नई दिशा और नया सोच प्रदान किया है इस नाटक में दांपत्य जीवन की गोपनीय नैतिकता का साहसपूर्ण ढंग से पर्दाफाश किया गया है है। सरकारी नियंत्रण को चुनौती देकर उच्चतम न्यायालय से लेखकीय अभिव्यक्ति के आधार पर मान्यता पाने वाला अपने ढंग के इस अकेले और अनूठे नाटक‘सखाराम बाइंडर’ को इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि वह गलाजत से भरी दिखावटी संभ्रांतता को पहली बार इतने सक्षम ढंग से चुनौती देता है। रटे-रटाये मूल्यों को सखाराम ही नहीं इस नाटक के सारे पात्र अपनी पात्रता की खोज में ध्वस्त करते चले जाते हैं। जिन नकली मूल्यों को हम अपने ऊपर आडम्बर की तरह थोप कर चिकने-चुपड़े बने रहना चाहते है, उसे सही-सही इस आइने में निर्ममता से उघडता हुआ देखते हैं। ‘सखाराम बाइंडर’ वही आइना है। भाषा के स्तर पर सारे पात्र बड़ी खुली और ऐसी बाजारुपन से संयुक्त भाषा का प्रयोग करते हैं जिन्हें हमने अकेले-दुकेले कभी सुना जरुर होगा। किन्तु उसे अपने संस्कारिता का अंश मानने में सदैव कतराते रहे हैं। पुरे नाटक में कथावस्तु की विलक्षणता न होते हुए भी पात्रों का आपसी संयोजन भाषा के जिस स्तर पर नाटककार ने किया है वही नाटकीयता को दरकिनार कर जीवन के सत्य को पूरी ईमानदारी से सामने लाता है पिछले दिनों इसी नाटक सखाराम बाईंडर की विचारोत्तेजक प्रस्तुति बेहद सादगी के साथ इलाहाबाद में लगभग 30 वर्षों के बाद वरिष्ठ रंग निर्देशक अफजल खान के निर्देशन में की गई उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में प्रस्तुत किए गए इस नाटक ने दर्शकों को एक नया अनुभव और जीवन के अनकहे सच को साझा करने के लिए प्रेरित किया सबसे अच्छी बात यह थी की नाटक को मंच तक लाने की पूरी परिकल्पना इतनी सहज और कसी हुई थी कि नाटक की कथावस्तु को कहीं से भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा हिंदी रंगमंच पर इस नाटक की प्रस्तुति वैसे भी जोखिम भरा काम है परंतु अफजल खान ने इसे पूरे साहस के साथ अपने हाथ में लिया और इसे कर दिखाया नाटक में जिस तरह के कंपोजीशन बनाए गए वे नाटक की प्रस्तुति को एक नया व्याकरण दे रहे थे इस नाटक के सभी पात्रों ने अभिनय के दौरान न सिर्फ स्वयं को अपने से मुक्त किया बल्कि अपनी भूमिका में दाखिल होने में सफलता प्राप्त की खासतौर पर महिला पात्रों ने अपनी भूमिका उम्मीद से ज्यादा बेहतर ढंग से निभाई यद्यपि महिला पात्रों के लिए इस नाटक की चुनौती भरी भूमिकाओं में परकाया प्रवेश बहुत मुश्किल था परंतु इन्होंने इसे संभव कर दिखाया रेनू राज सिंह और प्रतिमा वर्मा दोनों वरिष्ठ रंग अभिनेत्रियां है और यह दोनों ही पूरी समझ के साथ आंखों से बोलना जानती है इसीलिए यह दोनों अभिनेत्रियां अपनी भूमिकाओं को पूरी शिद्दत से जी सकी नाटक के अन्य पात्रों ने मुख्य पात्रों को बहुत अच्छे ढंग से सपोर्ट किया संवाद अदायगी मैं कलाकारों की आवाज बेशक जरूरत से कुछ कम थी जिसके कारण संवाद को सुनने में कहीं-कहीं असुविधा हुई बावजूद इसके सभी पात्रों ने बिना किसी अतिरिक्त उत्तेजना के अपनी भूमिका निभाई और सफलता पाई सखाराम बाईंडर एक ऐसा नाटक है जिस की प्रस्तुति के लिए निर्देशक का संवेदनशील होना बहुत जरूरी है सभी यह नाटक दर्शकों तक अपने संदेश को ले जा सकेगा इस प्रस्तुति में संदेश को अफजल खान पूरे सम्मान के साथ दर्शकों के सामने रख सके संगीत और बेहतर किया जाना चाहिए वहीं प्रकाश परिकल्पना मैं भी अभी काफी गुंजाइश ह इसमें कोई संदेह नहीं  35 साल बाद फिर से प्रस्तुत हुआ नाटक सखाराम बाईंडर पहले से काफी बेहतर रहा  ** समीक्षक अजामिल

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