शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

नाटक अकेलापन की प्रस्तुति

××नाटक
अकेलापन
दास्तान बड़े बुजुर्गों के अकेलेपन की
पिछले दिनों उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में जाने माने रंग निर्देशक अफजल खान द्वारा लिखित नाटक अकेलेपन की प्रस्तुति अफजल खान के निर्देशन में ही की गई आधुनिकता की गिरफ्त में दम तोड़ते पारिवारिक रिश्ते की व्यथा कथा इस प्रस्तुति में कहने की कोशिश की गई है पूरी दुनिया के फलक पर बड़े बुजुर्ग बहुत तेजी से अकेले होते जा रहे हैं और उनका यह अकेलापन धीरे-धीरे उन्हें मौत की तरफ ले जा रहा है इस प्रस्तुत की कथावस्तु बेहद प्रासंगिक है लेकिन अफसोस इस बात का है यह प्रस्तुति विचार और दृश्यों की पुनरावृत्ति और ठहराव की शिकार होकर उस तरह से प्रभावी नहीं बन पाई जैसे कि इसे होना चाहिए था और हम अफजल खान जैसे समर्थ निर्देशक से इसके प्रभावी होने की उम्मीद करते रहे हैं कहानी बुजुर्गों के अकेलेपन को ऊपर ऊपर स्पर्श करती रही और गहराई में बहुत सारे विरोधाभास छोड़ गई बड़े बुजुर्गों का अकेलापन बहुत बड़ी समस्या है जिसे उठाने के लिए इस समस्या की गहराई में जाना बहुत जरुरी है सोचना होगा कि इसमें दिखाई गई करोड़पति माली हालात वाली किसी बुजुर्ग महिला का अकेलापन किस तरह का होगा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की आवश्यकता है और ऐसी स्त्री के साथ परिस्थितियां क्या बनेगी कौन उसके साथ होगा और कौन नहीं यह सारी बातें देखना होगा बावजूद इसके अफजल खान ने अपनी कोशिश में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी एकल प्रस्तुति में डॉक्टर प्रतिमा वर्मा को लगभग 30 वर्षों के बाद मंच पर देखना अभिभूत कर देने वाला था सच कहा जाए तो उनके बेहतरीन अभिनय दे एक कमजोर स्क्रिप्ट को भी सब तरफ से भराव दिया और संभाले रखने की कोशिश की प्रतिमा वर्मा की इस वापसी को सार्थक और सकारात्मक रुप से देखा जाना चाहिए और उम्मीद करना चाहिए कि अब वह मंच से फिलहाल कुछ वर्ष वापस नहीं होंगी कुल मिलाकर इस प्रस्तुति में और कल्पनाशीलता तथा वैचारिक समृद्धता की आवश्यकता थी जोकि अफजल खान जैसे निर्देशक सहज ही कर सकते हैं संगीत पक्ष कमजोर था जो फिल्रर की तरह पूरे नाटक में बज रहा था जिससे संवादों के सुनने में कठिनाई पैदा हो रही थी इस प्रस्तुति को इंडोनेशिया ले जाने से पहले हम आग्रह करते हैं कि नाटक के निर्देशक अफजल खान नाटक के मुख्य कथावस्तु को और अधिक तार्किक बनाने की कोशिश करें आज प्रस्तुति से नाटकीयता को कम करते हुए जिन देशों की अवधि जरूरत से ज्यादा हो गई है उसकी अवधि को संतुलित करने की कोशिश करें इसमें कोई शक नहीं कि अफजल खान ने एक बेहतर विषय पर एक अच्छी प्रश्न याद करने की कोशिश की है यह विषय आज अप्रासंगिक भी है जरूरी भी है और दुनिया भर के करोड़ों-करोड़ों बड़े बुजुर्गों की व्यथा-कथा भी व्यक्त करती है कोई भी प्रस्तुति कभी अंतिम नहीं होती उसमें लगातार बदलाव होते रहते हैं यह प्रस्तुति भी समय के अनुसार और अधिक बड़े बुजुर्गों के अकेलेपन की करीब आएगी हम इसकी उम्मीद करते हैं मंच पर रोशनी थी लेकिन उस रोशनी में अकेलेपन का अवसाद झूठा लग रहा था ।
** समीक्षक अजामिल
** सभी चित्र विकास चौहान
*** इस प्रस्तुति के लगभग ढाई सौ चित्र विकास चौहान ने क्लिक किए हैं जो रंगकर्मी इन तस्वीरों को अपने पास सहेजना चाहे वह विकास चौहान से संपर्क कर सकता है

सोमवार, 25 सितंबर 2017

20 साल पहले पत्थर चट्टी रामलीला कमेटी की रामलीला प्रस्तुति की कुछ झलकियां

**20 साल पहले ऐसे ही हुई थी  पत्थर चट्टी की रामलीला इलाहाबाद की पत्थर चट्टी रामलीला कमेटी आज एशिया की सबसे बड़ी रामलीला कमेटी है । एक लंबा वक्त गुजर गया इसे रामलीला के प्रति पूरी प्रतिबद्धता के साथ काम करते हुए । मुझे याद है कि सन 2000 में मैंने इस रामलीला कमेटी के लिए पहली बार 20 घंटे की रामलीला लिखी थी । एक अलग तरह का अनुभव था वह मेरा । पहली बार की प्रस्तुति की राम भक्तों ने बहुत सराहना की । इसके बाद के वर्ष में मैंने अपने ही लिखे रामलीला के आलेख को निर्देशित भी किया । इस रामलीला में लगभग 100 कलाकार अभिनय कर रहे थे और एक बड़ी टीम नेपथ्य मे थी । आज यह रामलीला कमेटी अपनी प्रस्तुति में हाईटेक हो चुकी है । यह रामानंद सागर के धारावाहिक रामायण का ऑडियो ट्रैक पर रामलीला की प्रस्तुति कर रही है जिसे लोग खूब पसंद कर रही हैं । दिन गुजर जाते हैं पर यादें रह जाती है । मुझे आज से 20 साल पहले की पत्थर चट्टी की रामलीला की कुछ तस्वीरें मिल गई तो मन किया कि आप के साथ इसे साझा करू। ं यह यादें हमारी धरोहर है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैं पत्थर चट्टी रामलीला कमेटी के नींव के पत्थरों में लगा एक छोटा सा पत्थर हूं । यह मेरे लिए गर्व की बात है ।
** अजामिल

बुधवार, 20 सितंबर 2017

प्रयाग की हाईटेक रामलीला 30 साल पहले

** प्रयाग की रामलीला 30 साल पहले

प्रयाग की विश्व प्रसिद्ध रामलीला 30 साल पहले ही मेकेनिकल माइंड रामचंद्र पटेल ने हाईटेक कर दी थी । इसके पहले तक रामलीला को हाईटेक करने के छोटे-छोटे प्रयास होते रहे लेकिन ये कोशिशें  प्रयाग की सड़कों से होकर निकलने वाली चौकियोंं के छोटे-छोटे मंचों पर हो रही थी इसलिए इन मंचों पर प्रस्तुत किए जा रहे पात्रों में न बहुत ज्यादा गति थी और न अभिनेय ही था । 30 साल पहले रामचंद्र पटेल ने अहियापुर मोहल्ले के तमाम युवाओं को एकत्र करके भारती भवन लाइब्रेरी के सामने एक अस्थाई मंच बनाकर रामलीला प्रसंगों का हाईटेक अभिनय प्रस्तुत किया । इसके बाद इस रामलीला में पात्रों ने बाकायदा उड़ान भरी। ।क्रेन मैनेजमेंट के जरिए पात्र एक स्थान से दूसरे स्थान तक गए । संवादों को लाइट एंड साउंड के माध्यम से और भी ज्यादा प्रभावशाली बनाने का काम रामचंद्र पटेल ने किया । उस दौर के आकाशवाणी के  तमाम जाने माने  कलाकारों ने अपनी आवाज से इस रामलीला में  प्राण फूंक दिए  और एक बार  जैसे सब कुछ  सजीव हो उठा। दर्शकों के लिए यह सब कुछ न सिर्फ नया आकर्षण था बल्कि किताबों में पढ़ी गई कल्पनाओंं के साकार होने जैसा था । भारती भवन लाइब्रेरी के अस्थाई  मंच पर लाइट एंड साउंड के माध्यम से जब रामचंद्र पटेल के निर्देशन में रामलीला का हाईटेक ड्रामा पेश होता था तब कई हजार लोग उसे खड़े होकर देखते थे ।  30 मिनट की अवधि में पेश होने वाली है यह रामलीला प्रस्तुति अंधेरा होते ही शाम 7:00 बजे शुरू हो जाती थी और रात 1:00 बजे तक थोड़े थोड़े अंतराल के बाद इसके कई शो किए जाते थे । और मजेदार बात यह थी कि इसके हर शो में हजारों लोग देखने के लिए फिर जुट जाते थे । रामचंद्र पटेल कि यह रामलीला  लाखों लोग  देखते थे और इसे  प्रयाग कार  गौरव मानते थे । कहने में संकोच नहीं होना चाहिए क़ि प्रयाग की जिस हाईटेक रामलीला को आज एशिया की सबसे बड़ी हाईटेक रामलीला होने का खिताब मिला है, उसका बीज एक छोटे से मेकेनिकल माइंड राम चंद्र पटेल ने आज से 30 साल पहले रखा था जो आज तमाम नई टेक्नोलॉजी के साथ पत्थर चट्टी रामलीला कमेटी के मंच पर 10 दिनों तक हजारों दर्शकों को प्रतिदिन देखने को मिलता है । रामचंद्र पटेल की कल्पनाएं पत्थर चट्टी रामलीला कमेटी के मंच पर टेक्नोलॉजी के एक खास अंदाज में सामने आ रही है और रामचंद्र पटेल लगातार इस दिशा में नए नए प्रयोग करते ही जा रहे हैं जिसका राम भक्त हृदय से स्वागत करते है ।

**अजामिल ं

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

नेपाल की रामलीला

++इलाहाबाद में हुई  नेपाल की रामलीला
रामकथा की लोकप्रियता दुनिया की सारी भाषाओं में सारी संस्कृतियों में और सारी सभ्यताओं में देखने को मिलती है। रामकथा मैं समाहित जीवन मूल्य
आज पूरी दुनिया को संस्कारों और सभ्यता का पाठ पढ़ा रहे हैं । इलाहाबाद के मेहता प्रेक्षागृह मैं अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के तत्वावधान में आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में नेपाल की एक सांस्कृतिक संस्था के कलाकारों ने रामकथा के कुछ प्रसंगों का मंचन किया । इस मंचन में रामलीला के पात्र अंग्रेजी में संवाद बोल रहे थे जो कुछ अटपटा सा लग रहा था । उम्मीद की जा रही थी कि रामलीला की भाषा हिंदी होगी या नेपाली । भारत और नेपाल के संबंध सांस्कृतिक स्तर पर जोड़ने के लिए हिंदी या नेपाली भाषा ज्यादा कारगर है  । प्रसंग कई हिस्सों मैं प्रस्तुत किए गए । सभी नेपाली अभिनेता अभिनेत्रियों ने बहुत अच्छा अभिनय किया और रामकथा का संदेश दर्शकों तक पहुंचाने में सफलता पाई । राम और सीता दोनों बहुत सुंदर थे और उनकी वेशभूषा भारतीय रामलीला से अलग-थलग होने के कारण अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी। संगीत पक्ष लाउड था लेकिन अनुष्ठानिक प्रस्तुतियों में संगीत का सामान्य से तेज होना जरूरी भी होता है । नेपाल के सभी कलाकारों को ऑल इंडिया न्यू थियेटर की बहुत-बहुत बधाई और फिर इलाहाबाद आने का विनम्र निमंत्रण ।
अजामिल

शनिवार, 16 सितंबर 2017

सेमिनार भारतीय सिनेमा का क्रमागत विकास

**व्यंजना का राष्ट्रीय सेमिनार

** सिनेमा उत्सव

भारतीय सिनेमा का क्रमागत विकास- एक परिचर्चा

भारतीय सिनेमा के क्रमागत विकास यात्रा के 105 गौरवशाली वर्ष बीत चुके हैं और आज हम दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में बनाने वाले देशों में तीसरे स्थान पर हैं । हम ओसतन 6 फ़िल्में रोज बनाते है । इनमें  व्यवसायिक और कला फिल्में  दोनों शामिल हैं ।  भारतीय फिल्मों के क्रमागत विकास के पूरे परिदृश्य को देखने और उस पर एक समीक्षात्मक दृष्टि डालने के उद्देश्य से इलाहाबाद की जानी-मानी सांस्कृतिक संस्था व्यंजना ने मेहता प्रेक्षागृह मेंं भारतीय सिनेमा का क्रमागत विकास विषय पर एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया । चार सत्रो में विभाजित इस  आयोजन में  फिल्म विषय से जुड़े  अनेक  विशेषज्ञों ने  शिरकत की  । इस आयोजन को वरिष्ठ फिल्म समीक्षक प्रहलाद अग्रवाल फिल्म निर्देशक गौतम चटर्जी फिल्म समीक्षक आनंदवर्धन शुक्ल फिल्म समीक्षक मनमोहन चड्ढा फिल्म समीक्षक प्रोफेसर अनिल चौधरी फिल्म समीक्षक सुनील मिश्रा फिल्म समीक्षक प्रोफेसर महेश चंद्र चट्टोपाध्याय आदि विशेषज्ञों ने संबोधित किया । भारतीय  फिल्मों के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए लगभग सभी फिल्म विशेषज्ञो ने यह स्वीकार किया क़ि इतनी लंबी यात्रा तय करने के बाद भी भारतीय सिनेमा का बड़ा प्रतिशत अपनी सामाजिक भूमिका को लेकर मनोरंजन के आस-पास ही टिका हुआ हैं।  खास तौर पर हिंदी सिनेमा दर्शकों का बड़ा वर्ग इस माध्यम को टाइमपास माध्यम मानकर चलता है जबकि सिनेमा विभिन्न स्तरों पर आवाम की सभी गतिविधियों को प्रभावित कर रहा है । सिनेमा आज जिंदगी में एक निर्णायक भूमिका में है । किसी वक्त में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी फिल्में जरूर बनाई गई जो कमोबेश जिंदगी की सच्चाइयों को सामने लाती थी । फिर सिनेमा अपनी व्यवसायिकता और बाजार के दबाव में व्यापार की शर्तों पर बनाया जाने लगा । आज सिनेमा पूरी तरह से व्यापार बन चुका है और इससे जुड़े कलाकारों टेक्नीशियन और लेखको कीं फितरत भी सिनेमा को व्यापार की नजर से देख रही है । करोड़ों का व्यापार सिनेमा का उद्देश्य हो गया है  ।

सार्थक कलात्मक समानांतर सिनेमा के लिए गुंजाइश बहुत कम हो गई है । फिल्म विशेषज्ञो ने इस मौके पर फिल्म इंडस्ट्री को  यादगार फिल्मों के जरिए  योगदान देने वाले  नए पुराने फिल्मकारों को  याद किया और उन फिल्मों की भी चर्चा की जो भारतीय फिल्मों के क्रमागत विकास में टर्निंग पॉइंट कही जाती है । इस अवसर पर फिल्म कला के विशेषज्ञ गौतम चटर्जी ने कहा कि भारतीय फिल्मों के दर्शक आज  भी फिल्म देखने की कला से अनिभिज्ञ  हैं । फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हें इस कला को सिखाने की कभी कोशिश नहीं की । समीक्षा का स्तर भी इतना अच्छा नहीं रहा कि वह दर्शकों को फिल्म देखने के लिए प्रेरित कर  पाती । प्रथम पंक्ति के जानकारी से लैस फिल्म समीक्षक फिल्म इंडस्ट्री के पास आज भी नहीं है । उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री देशी-विदेशी सफल फिल्मकारों का आजतक अनुकरण और अनुसरण ही करती आ रही है जिसकी वजह से दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में बनाने के बावजूद हमारी फिल्मों की कोई ऐसी पहचान नहीं है जिसे हम भारतीय फिल्मों की पहचान बता सकें । इस मौके पर अधिकतर वक्ताओं ने फिल्म  इनसाइक्लोपीडिया मेंं दी गई भारतीय फिल्मों की उपलब्ध जानकारी ही विस्तार से परोसी जो बेशक रोचक थी परंतु इस जानकारी में मौलिक सोच का अभाव था । यह भी कहा गया क़ि भारतीय फिल्म निर्माता फिल्म समीक्षाओं की फिक्र नहीं करता और वह अपना समीक्षक अपने दर्शक को मानता है । वह समीक्षा पढ़कर फिल्म देखने भी नहीं जाता । फिल्म उसके लिए बैठकर मूंगफली खाने जैसा ही टाइमपास है । बावजूद इसके दो राय नहीं क़ि मौजूदा हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बहुत अच्छी फिल्में बनाई जा रही हैं और बेहद सशक्त फिल्म निर्देशक पूरी दमदारी से अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप फिल्म बनाने के प्रयास में लगे हुए हैं । इस अवसर पर दादा साहब फाल्के के अविस्मरणीय योगदान को याद किया गया और उनके संघर्षों को भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की बुनियाद बताया गया । दादा साहब फाल्के की श्रीमती जी को याद करते हुए मृदुला कुुशालकर ने कहा कि उनका भी योगदान दादा साहब फाल्के के योगदान से किसी स्थर पर कम नहीं था । ब्लैक एंड वाइट फिल्मों की प्रोसेसिंग वही किया करती थी ।

यह कार्यक्रम एक शानदार मौका था जिसमें फिल्म इंडस्ट्री के तमाम नामचीन लोग मौजूद रहे  । व्यंजना इलाहाबाद की उन संस्थाओं में एक है जो सिनेमा सहित तमाम कलाओ पर  वर्षभर  कार्यक्रमों का  आयोजन करती है और विभिन्न कलाओं के साधकों को मंच प्रदान करती है । इस आयोजन का संचालन वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी राजेश मिश्र और वरिष्ठ पत्रकार धनंजय चोपड़ा ने किया।   कार्यक्रम की ओवरऑल कंट्रोलर आशा अस्थाना और वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी मधु शुक्ला रही । यह एक ऐसा आयोजन था जो बहुत दिनों तक लोगों की स्मृति में रहेगा।

**चित्र व रिपोर्ट - अजामिल

शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

महादेव की प्रस्तुति

नाटक / रेटिंग ***
महादेव
उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह मैं समानांतर इंटीमेट थिएटर ने विश्व विख्यात नाटककार विलियम शेक्सपियर के सुप्रसिद्ध नाटक मैकबेथ पर आधारित नाटक महादेव की शानदार प्रस्तुति की । इस नाटक की प्रासंगिकता को सुनिश्चित करते हुए इसका रूपांतरण नाटककार सुमन कुमार ने किया । रंगकर्मियों के साथ सार्थक संदेशों को लेकर दर्शकों के बीच दर्शकों को नाटक का हिस्सा बनाते हुए मंचन करने का साहस वरिष्ठ रंग निर्देशक अनिल रंजन भौमिक ने किया । यह नाटक भूत वर्तमान और भविष्य के साथ मनुष्य के मनोभाव और आकांक्षाओं में होने वाले परिवर्तन को रेखांकित करता है  । मैकबेथ का फलक बहुत विस्तृत है । सुमन कुमार ने इस नाटक की मूल संवेदना को पूरे सम्मान के साथ बचाते हुए कुछ ऐसा कहने की कोशिश की है जो आज के समय का सच भी बन गया है ।

** समीक्षक / अजामिल

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

Idea 4G की शूटिंग के दौरान के कुछ स्मृति चित्र

श्रृंगवेरपुर इलाहाबाद लोकेशन में आइडिया 4जी की विज्ञापन की शूटिंग के दौरान के कुछ चित्र इस विज्ञापन में इलाहाबाद के रंगकर्मियों ने भी काम किया था इन में अजामिल आलोक नायर सफलता श्रीवास्तव आदि प्रमुख रूप से थे

खुसरो बाग / रेडियो फीचर / अजामिल

**रेडियो फीचर

खुसरो बाग

**लेखक /अजामिल
सुत्रधार एक
किसी मुल्क की सम्पन्नता उस मुल्क की साहित्यिक साँस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व की विरासत से जानी पहचानी जाती है ।

सूत्रधार दो

जीवन्त कौमों का इतिहास और और सांस्कृतिक विरासत किसी राष्ट्र के चरित्र संकल्प और उस राष्ट्र के लोगों द्वारा देखे गए सपनों का सच बयान करते हैं ।

सूत्रधार एक :

ऐतहासिक विरासत किसी मुल्क के अतीत की चश्मदीद गवाह होती है जिसकी निशानदेही पर हम किसी मुल्क के स्वर्णिम काल का चेहरा पढ़ सकते हैं ।

सूत्रधार दो :

यह सच है क़ि एक न एक दिन हर विरासत को उम्र दराज़ होकर काल के गाल में समा जाना है ।

सूत्रधार दो : लेकिन अतीत की स्मृतियाँ तरल होती हैं जो जीवन के साथ तेज़ प्रवाह में बहती जाती हैं ।

सूत्रधार दो : नए का निर्माण पुराने के नष्ट होने पर ही निर्भर करता है इसी लिए अतीत के साक्ष्य को हमेशा के लिये सुरक्षित करना मुश्किल ही नहीं , एक बड़ी चुनौती भी रही मानव सभ्यता के सामने ।

सूत्रधार दो : पृथ्वी पर मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो अपने अतीत से बहुत प्रेम करता है ।

सूत्रधार एक : वह अपने अतीत की यादों को बचाता है । उसके लिए मर मिटता है । क्योकि अतीत में ही उसकी जीवन यात्रा के पद चिन्ह होते हैं ।

सूत्रधार दो : हमारी विरास्टीन बोलते पद चिह्न हैं । ये हमें बताते हैं क़ि मानव सभ्यता किन रास्तों से होकर आई और इसने दुनिया को संवारने  में क्या योगदान दिया ।

सूत्रधार एक :

इन पद चिह्नों को बचाने के प्रयास और संघर्ष मानव जाति के ज़िंदा रहने के सुबूत हैं ।

सूत्रधार दो :

कोई विरासत नष्ट होती है तब सम्पूर्ण विश्व इतिहास की स्मृतियों को नुक्सान पहुँचता है ।

सूत्रधार एक :

विरासतँ विश्व सभ्यता की सम्पदा का सामूहिक सरमाया है इसी लिए इसे बचाने के प्रयास में पूरी दुनिया बढ़ चढ़कर आगे रहती है ।

सूत्रधार दो :

पूरी दुनिया का यह एक ऐसा रुझान है जिसमें जीवन को गौरवपूर्ण बनाने की इच्छा समाहित है ।

सूत्रधार एक :

मानव जीवन इसीलिए समृद्ध है क्योकि मनुष्य के पास मनुष्य और मनुष्यता की विरासत है ।

सूत्रधार दो :

यह सम्पदा अतुलनीय और अमूल्य है ।

सूत्रधार एक :

भारतीय धर्म , संस्कृति और राजनीति के विषद केंद्र के रूप में तीर्थराज प्रयाग की महिमा का बखान वैदिक काल से आज तक अपनी तमाम विरासतों के साथ किया जाता रहा है । पुराणों में प्रयाग को पवित्र स्मृति माना गया है । यज्ञभूमि होने के कारण प्रयाग का पर्यावरण और गंगा यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होने के कारण पुरे विश्व की मानव सभ्यता को आकर्षित करता रहा ।

सूत्रधार दो :

सन् 1597 में बादशाह अकबर हिन्दोस्तान आया और उसने अपने रिहाइश के लिए प्रयाग को चुना । यहां के आबोहवा से वह इतना प्रभावित हुआ क़ि उसने इस जगह का नाम बदलकर अल्लाहाबाद कर दिया । यह नाम आज भी प्रचलित है ।

सूत्रधार एक :

बादशाह अकबर द्वारा  संगम के करीब तामील करवाये गए विशाल किले के अलावा अल्लाहाबाद में उस दौर में कई और इमारतें ज़रूरतों के मुताबिक़ मुग़ल शासकों ने बनवाई सूत्रधार दो :

उसी दौर में बादशाह जहाँगीर के हुक्म से आकाश छूती सराय खुल्दाबाद बनाई गई । इस सरायं में कारोबार के सिलसिले में अल्लाहाबाद आने वाले लोग रात गुज़ारा करते थे ।

सूत्रधार एक : सरायं खुल्दाबाद से उत्तर दिशा की ऒर 64 एकड़ के क्षेत्रफल में वर्गाकार खुसरो बाग़ बनाया गया । इस बाग़ की चौड़ी और ऊंची दीवारें पत्थरों को जोड़ कर  काफी मज़बूत बनायी गयी है । मिफ्ताहुल तवारीख में ज़िक्र है क़ि किले के बचे हुए मसाले से खुस्रोबाग की दीवार को तामील करवाया गया था ।

सूत्रधार दो :

खुल्दाबाद सरायं के उत्तर की ओर एक सादी बनावट वाला विशालकाय फाटक है । दक्षिण की ओर भी एक फाटक है जो सरायं खुल्दाबाद में खुलता है । 60 फ़ीट की ऊचाईवाला यह फाटक मज़बूत लकड़ी का है । इसकी बनावट किसी किले।या महल के दस्तूरी फाटक जैसी है । इस फाटक के ऊपरी हिस्से में फ़ारसी में खुदा हुआ है -

आवाज :

बहुक्म हज़रत शहंशाही खिलाफत पनाही ज़िल्ले इलाही नूरुद्दीन महम्मद जहांगीर बादशाह गाज़ी बहतमाम् मज़ीद ख़ास आकारज़ा मुसब्बिर ई बिनाय अली सूरत इत्माम याफ ।

सूत्रधार एक :

यानी बादशाह जहांगीर के हुक्म से आका चित्रकार के ख़ास इंतज़ाम के बाद यह बड़ी इमारत बनकर तैयार हुई । इसके करीब हिज़री सन् की तीन अंक साफ़ दीखते हैं ।

सूत्रधार दो :

खुसरो बाग़ के दक्षिण  और पूर्व की तरफ कोने में जहांगीर ने एक खूबसूरत बावली बनवाई थी जिसमें साफ़ पानी भरा रहता था ।

गाइड की आवाज़ : शांत हो जाइए । शांत हो जाइए । हम जहांगीर के समय में भटक रहे है । ये वह समय था जब हिन्दोस्तान की सरज़मी पर मुग़ल बादशाह अपनी हुकूमत का विस्तार कर रहे थे । अरे अरे ये आप क्या कर रहे हैं । ऐतिहासिक इमारतों को नुक्सान पहुचाना ,इसकी दीवारों कुछ लिखना अपराध है । आप इस तरफ आइये ।मेरे साथ । ओके । जी आप क्या पूछ रहे थे ।

पर्यटक : हाँ क्या नाम बताया था आपने । ओह् याद आया । शेरू गाइड ।

हँसी

वही पर्यटक : शेरू गाइड । ये बताओ । ये खुसरो कौन था ?

गाइड : खुसरो जहाँगीर का बेटा था । सन् 1587 में ये पैदा हुआ था । बताते हैं क़ि खुसरो ज़िद्दी था और अपनी बात मनवाने की खातिर किसी भी सीमा तक जा सकता था । पूरी दुनिया को पर राज करने की उसकी ख्वाहिश ने उसे अपने अब्बा जहाँगीर की मुखालफत के लिए मजबूर कर दिया । खुसरो हुकूमत की नाफ़रमानी शुरू कर दी ।

महिला पर्यटक : अपने बादशाह अब्बा की नाफरमानी ?

गाइड :

जी मोहरमा । अपने बादशाह अब्बा की नाफ़रमानी । गज़ब तो होना ही था । सन् 1606 में।एक दिन खुसरो जहाँगीर के सामने जा खड़ा हुआ ।

संगीत- चेंज ओवर

खुसरो :

आप बादशाह हैं लेकिन रियाया की तकलीफों की आपको कोई फ़िक्र नहीं है । इतना वक़्त गुज़र गया । हमने सरहदों के इज़ाफ़े को लेकर कोई कोशिश नहीं की ।

जहाँगीर :

ऐसा करना क्या ज़रूरी है ? अल्लाह ने हुकूमत के लिए जितना हमें अता फरमाया है , वो कम तो नहीं ।

खुसरो : क्या कह रहे हैं आप ? हुकूमत ऐसे की जाती है । उम्र का असर आप पर दिखने लगा है । आप आराम कीजिये ।अब मुझे ही कुछ करना होगा ।

संगीत -चेंज ओवर

गाइड :

इसके बाद खुसरो ने लाहौर फतह के इरादे से बिना जहाँगीर के हुक्म के गुपचुप तैयारी शुरू की । वह राज्य की सेना को लड़ाई में झॉकना चाहता था । जहाँगीर को इसकी खबर लगी तो उसने खुसरो को तलब किया ।

संगीत : चेंज ओवर

जहाँगीर : ये हम क्या सुन रहे हैं मियां । आप जंग की तैयारी कर रहे हैं?

खुसरो :

आपने ठीक सुना है । आपको खुश होना चाहिए क़ि हम जंग जीत कर सरहदों का इज़ाफ़ा चाहता हूँ ।

जहाँगीर : इसमें खून बहेगा । दोनों राज़्यों की रियाया को तकलीफ होगी । मैं तुम्हें क़तले आम की इजाज़त नहीं दे सकता । आपको अपना ये इरादा मुल्तवी करना ही होगा ।

खुसरो :

न करूँ तो ?

जहाँगीर : तो हम आपको ज़बरदस्ती रोक देगें । आप भूल रहे हैं क़ि हम सिर्फ आपके अब्बा नहीं है , बादशाह भी हैं ।

खुसरो : अगर मैं बागी हो जाऊं तो

जहाँगीर :

बरखुदार , आप जो कह रहे हैं उसे सोच नहीं रहे हैं । आपके साथ मैं वही सुलूक करूंगा जो एक बादशाह बागियों के साथ करता हैं । आप बख्शे नहीं जाएगें ।

खुसरो : ठीक है । मैं इसी वक़्त आपके हुक्म मानने से इनकार करता हूँ ।आप समझ लीजिये क़ि

संगीत - चेंज ओवर

गाइड :

और बगावत हो गयी । जहाँगीर के हुक्म की मुखालफत करते हुए उसने सेना की एक टुकड़ी के साथ लाहौर फतह के लिए कूच करने की योजना बनायी जिसकी खबर गुप्तचरों के ज़रिये जहाँगीर को लग गयी । खुसरो गिरफ्तार कर लिया गया । बागी की सजा उस ज़माने में मौत हुआ करती थी । लेकिन जहाँगीर खुसरो का बाप भी था लिहाज़ा उसकी मौत की सजा को रियाया के कहने पर मुआफ़ कर दिया लेकिन उसकी आँखें निकलवा लीं । और उसे बुरहानपुर जेल के कैदखाने की अँधेरी कोठरी में डलवा दिया ।

संगीत चेंज ओवर

सूत्रधार एक:

खुसरो बाग़ के बीचों बीच थोड़ी थोड़ी दूर पर चार भव्य इमारतें बनी हुई हैं । इनके बीच दो खूबसूरत जलकुंड बनाये गए हैं । इसमें कभी पानी के फौव्वारे चला करते होंगे ।

सूत्रधार दो :

इसके पूर्ववाली गुम्बद दार  इमारत एक खंड में है जो पत्थर की बनी है । यह खुसरो की कब्र है । इस इमारत की दीवारों पर और गुम्बद के आसपास फ़ारसी के बहुत से शेर लिखे हैं । इन शेरों का खुसरो की कब्र से कोई ताल्लुक नहीं है । ये शेरों में आध्यात्मिक और नीतिगत बातों की चर्चा हैं ।

संगीत चेंज ओवर

गाइड : खुसरो की कब्र के यहां होने के कारण यह जगह खुसरो बाग़ कहलाती है । इतिहास बताता है क़ि अँधा कर दिए जाने के बाद भी खुसरो की मुश्किलें कम नहीं हुई थीं । जहाँगीर को खुसरो पर बड़ी दया आती । वह उसके जेल में रहने पर भी उसकी मदद करता रहता । सन् 1622 में जब खुसरो बुरहानपुर जेल में था तब उसके भाई खुर्रम से उसकी मुलाक़ात हुई । जेल में खुसरो की शान शौकत देखकर खुर्रम खुश होने की जगह घबरा गया । उसे लगा क़ि उसके अब्बा जहाँगीर सारा राजपाट कहीं खुसरो पर दया करके न देदें । उसने अपने भाई को रास्ते से हटाने की योजना बनायी । एक दिन उसने बुरहानपुर के एक बधिक को अपने पास बुलाया और खुसरो की हत्या के लिए धन का प्रलोभन देकर उसे राजी कर लिया ।

संगीत चेंज ओवर

खुर्रम :

तुम समझ गए तुम्हे क्या करना है । किसी भी हालत में खुसरो को ज़िंदा नहीं बचना चाहिए ।

हत्यारा :

आप मुझसे ऐसा क्यों करने को कह रहे हैं । आपको सिर्फ शुबहा है क़ि बादशाह आपको सल्तनत से महरूम कर देंगे । इस शुबहा की वजह से भाई का कतल करवा देना ।

खुर्रम :

आपसे जो कहा गया है उसे करें ।।ज़्यादा सोचना आपके लिए भी ठीक नहीं । जाइए और।जो कहा गया है उसे हमारा हुक्म समझ कर तामील कीजिये ।

संगीत चेंज ओवर

गाइड :

किराये के बधिक ने बुरहानपुर जेल में जब खुसरो अकेला बैठा अल्लाह को याद कर रहा था , खुर्रम के भेजे हत्यारे ने दबे पाँव वहां पहुँच उस पर खुखरी से वार किया और उसकी हत्या करदी । इधर खुर्रम ने अपने अब्बा जहाँगीर को खबर कर दी की क़ि खुसरो पेट दर्द की असहनीय पीड़ा से तड़प कर मर गया । यह एक ऐसा सदमा था जिसने जहाँगीर को तोड़ कर रख दिया । खुर्रम ने खुसरो की मौत की असलियत को बुरहानपुर के कब्रिस्तान में खुसरो के साथ दफना दिया ।

सूत्रधार दो:

खुसरो को मौत के बाद भी कब्र में चैन न मिला । आवाम की मांग पर उसका शव बुरहानपुर कब्रिस्तान से निकालकर आगरा लाकर दफना दिया गया । यहां लोग उसकी कब्र की पूजा करने लगे । उसकी मज़ार बनाने की तैयारी होने लगी ।

सूत्रधार एक :

यह बात खुसरो की सौतेली माँ नूरजहाँ को नागवार गुज़री । उसने तूफ़ान खड़ा कर दिया । वह खुसरो से पहले ही नफरत करती थी । जहाँगीर ने नूरजहाँ को बहुत समझाया ।

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जहाँगीर : ये आप क्या कर रही हैं । आखिर खुसरो आपकी भी औलाद है । वह इस जहां से जा चूका है । उससे कोई भूल हुई हो तो मैं उसे मुआफ़ी देने की आपसे दरख्वास्त करता हूँ । जो अब ज़िंदा नहीं है उसकी नाफार्मानिया भुला देनी चाहिए ।

सूत्रधार एक :

नूरजहाँ जानती थी क़ि खुसरो के रहते खुर्रम को जहाँगीर कभी राजपाट नहीं सौपेंगें क्योकि वह खुसरो से बेपनाह मोहब्बत करते थे । नुएजहां खुद भी आगरा में कयाम कर रही थी । वह नहीं चाहती थी क़ि खुसरो की कोई भी याद के सुबूत आगरा में हों । लिहाज़ा उसने जहाँगीर से कहा क़ि -

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नूरजहाँ : हमें भी खुसरो से मोहब्बत है । हम चाहते हैं क़ि मौत के बाद उसे कब्र में सुकून मिले । हम इसीलिए उसकी कब्र किसी ऐसी जगह पर चाहते हैं जहां सियासत का शोर उसे परेशान न करे और वह कब्र में चैन की नींद सो सके ।

सूत्रधार दो :

जहाँगीर नूरजहाँ की चाल को समझ न सका । नतीज़तन वह वक़्त जल्द आ गया जब खुसरो की आगरा स्थित कब्र को एक बार फिर खोदा गया और उसके शव को पूरी सुरक्षा व्यवस्था में आगरा से इलाहाबाद लाकर खुल्दाबाद सरांय में दफना दिया गया । जहाँगीर ने अपने बेटे खुसरो की याद की हमेशा के बनाये रखने के इरादे से उसकी कब्र को एक बड़ी और भव्य इमारत में तब्दील करवा दिया । वहां एक बाग़ बनवाया और उसे नाम दिया खुसरो बाग़ । इसके बाद खुर्रम को जहाँगीर ने बादशाहत अता फ़रमाई । यही खुर्रम आगे चलकर मुगलकालीन इतिहास में शाहजहाँ के नाम से प्रसिद्द हुआ । इतिहासकार डॉक्टर बेनीप्रसाद ने अपनी किताब जहाँगीर में इसका ज़िक्र तफ़सील से किया है ।

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तालियों की आवाज़

गाइड:

शुकिया आप सबका शुक्रिया । अब आप सब इस तरफ देखिये । यहाँ से । सब इस तरफ तशरीफ़ ले आएं । ये जो आप एक और दो मंज़िला इमारत देख रहे हैं ये संन 1625 ईस्वी में बनना शुरू हुई थी लेकिन ये बनकर मुकम्मल हुई थी सन् 1632 में ।

पर्यटक : क्या ये भी किसी की कब्र है ?

गाइड : जी ठीक समझे आप । ये भी कब्र है । इसे खुसरो की बहिन सु्ल्तानुन्निसा   ने अपनी  अपने ज़िंदा रहते तामील करवाया था। लकिन अफ़सोस

सु्ल्तानुन्निसा के इंतकाल के बाद उसी इस कब्र में दफनाया नहीं जा सका । ये कब्र आज भी खाली पड़ी है ।

एक मसखरा पर्यटक :

अच्छा तो इसे मेरे लिए बुक कर दीजिये ।

ज़ोरदार ठहाका ।

गाइड :  जनाब आपको ये कब्र पसन्द आ रही है और सु्ल्तानुन्निसा को ये कब्र मुकम्मल होने के बाद पसन्द आई ।उसकी राय बदल गयी । लिहाज़ा जब उसका इंतकाल हो गया तब उसे सिकन्द्ररे में अकबर की कब्र के बगल में नयी कब्र तामील करवाकर दफन कर दिया गया ।

संगीत चेंज ओवर

सुत्रधार एक :

सु्ल्तानुन्निसा के लिए बनी ये कब्र आज भी खाली है । इस दो मंज़िला इमारत की दीवारों का रंग बेहद चटकीला है और दूर से चमकता है । इमारत की नक्काशी मुगलकालीन स्थापत्य कला का अनुकरण है । सभी आकार बहुत साफ़ और खूबसूरत हैं ।

सूत्रधार दो :

इस इमारत की बाहरी दीवारों पर फ़ारसी भाषा में पचास के लगभग शेर उकेरे गए हैं । जिनमें उपदेश चेतावनी संसार की असारता और बैराग्य आदि के बाबत ज़िक्र किया गया है ।

सूत्रधार एक :

इस इमारत के पश्चिम दिशा की ओर खुसरो की माँ शाह बेगम की तीन मंज़िला खूबसूरत कब्र है । इसके ऊपरी भाग में गुम्बद्दार छतरी बनायी गयी है । असली कब्र इस इमारत की सबसे नीचे वाली मंज़िल में है लेकिन इस कब्र का संगेमरमर का बना नकली आकार ऊपर की मंज़िल पर स्थापित कर दिया गया है । शाहबेगम की

मौत सन् 1603 में अफीम के ज़्यादा खा लेने की वजह से हुई थी ।

सुत्रधार एक :

शाहबेगम की संगेमरमर की कब्र के दोनों ओर फ़ारसी में दो शेर उकेरे गए हैं जिनका तर्जुमा करने पर शाहबेगम के जन्म और मृत्यु की पुख्ता जानकारी मिलती है । कुछ और शेर भी लिखे हैं शाहबेगम के अच्छे चरित्र की ओर इशारा करते हैं ।

उनके बारे में कहा गया है -

आवाज :

शाहबेगम ने अपने सतीत्व से ईश्वर के दयारूपी मुख मंडल की शोभा बढ़ाई और परलोक को अपने गौरव की ज्योति से सुसज्जित किया । शाहबेगम की असीम पवित्रता की क्या प्रसंशा की जाए जिसने अपने सुकर्मो से स्वर्ग के मुख को उज्ज्वल कर दिया है ।

सूत्रधार एक :

ये तीनो इमारतें एक दूसरे के करीब करीब बनी हुई । खुसरो बाग़ में एक चौथी इमारत भी तीनों इमारत से कुछ दूर पर है । इसमें कोई कब्र नहीं है । यह गोलाकार एवम् गुम्बड़कार है । इसे तम्बोली बेगम का महल कहा जाता है । तम्बोली शब्द इस्टबोली का अपभ्रंश लगता है । तंबोली बेगम कौन थी इसकी कोई जानकारी कहीं नहीं मिलती ।

सूत्रधार दो :

सन् 1632 इतिहासकार पीटर मुंडी ने खुसरो बाग़ को देखकर कहा था -

आवाज : मैं आज शाम खुसरो बाग़ गया । यह अनोखी जगह है । यहाँ की हरयाली सुकुंजदा है । यहाँ शान्ति है ।यहां तीन कब्र हैं । खुसरो की , उसकी माँ की और उसकी बहिन की । खुसरो की कब्र के सिरहाने वह कुरआन रखा है जिसको पढ़ते हुए वह मारा गया था ।

सूत्रधार दो : सन् 1824 में खुसरो बाग़ को देखकर एक और इतिहासकार विशप हेबर ने लिखा था -

आवाज़ :

खुसरो बाग़ की ये सभी इमारतें पवित्र , भावजनक, मर्मस्पर्शी और बेहद खूब सूरत हैं । मुगलकालीन स्थापत्य कला को इनकी बनावट में देखा जा सकता है ।इनमें इस्तेमाल किये गए पत्थर रंगीन और चमकीले नहीं हैं । शिल्पकारों ने साधारण से ही असाधारण रच दिया है । इन इमारतों के आगे इंग्लैंड की स्थापत्य कला फीकी लगती है ।

सूत्रधार दो :

पीढ़ियों पर पीढियां गुज़र गयीं । खुसरो की याद को सहेजे हुए खुसरो बाग़ सराय खुल्दाबाद की ही नहीं बल्कि इल्लाहाबाद की शान में चार चाँद लगाता आज भी मौजूद है । लोग यहां बनी कब्रों के वास्तु शिल्प और कला और इस्लामी लिखावट के सुंदर नमूने को देखन केे लिए दूर दूर से आते हैं और मुगलकालीन सत्ता संघर्ष की सत्यकथा से जुड़कर गर्व का अनुभव करते हैं ।

सूत्रधार दो :

इतिहास की बहुमूल्य विरासत को सिर्फ औपचारिक सुरक्षा उपायों से ही नहीं बचाया जा सकता । हमें अपनी विरासत से प्यार भी करना होगा । और इसका सम्मान करना भी सीखना होगा । इतिहास भूलने का पाठ नहीं है । इतिहास मानव अनुभवों का एक ऐसा विशाल संग्रह है जो वर्तमान संवारने में हमारी मदद करता है ।

संगीत : समाप्त

अजामिल

आकाशवाणी इलाहाबाद से प्रसारित इस रेडियो फीचर का निर्देशन अभिनय श्रीवास्तव ने किया था ।

**सभी चित्र / अजामिल