शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

महारथी का लोकार्पण

*लोकार्पण  उत्सव *
नाटक  महारथी  का विमोचन
इलाहाबाद की जानी-मानी नाट्य संस्था बैकस्टेज के तत्वावधान मैं सुप्रसिद्ध नाटककार रंग निर्देशक और अभिनेता
विभांशु वैभव के नए नाटक महारथी का लोकार्पण प्रसिद्ध नाटककार कथाकार कवि अजित पुष्कल और साहित्य आलोचक प्रोफेसर संतोष भदौरिया लोकनाट्य विशेषज्ञ अतुल यदुवंशी आलोचक डॉक्टर अनुपम आनंद रंग निर्देशिका सुषमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार धनंजय चोपड़ा और अजामिल ने संयुक्त रुप से किया इस अवसर पर नाटककार विभांशु वैभव के पिता आदरणीय गौरी शंकर जी भी उपस्थित रहे लोकार्पण के बाद वक्ताओं ने कहा की विभांशु वैभव का नाटक महारथी विगत 20 वर्षों से देश के तमाम हिस्सों में तमाम नाट्य संस्थाओं द्वारा पूरे दमखम के साथ खेला जा रहा है और रंगकर्मी इसकी विषय वस्तु को आज के दौर का जरूरी विमर्श मानते हुए पूरे मन से नए नए प्रयोगों के साथ इसे खेल रहे हैं यह सफल नाटक नाटक की कसौटी पर पूरी तरह से जाने के बाद प्रकाशित हुआ है निश्चय ही यह हिंदी रंगकर्म के लिए बहुत बड़ी बात है ऐसा ही होना चाहिए विभांशु वैभव भी इस नाटक को नाटक के क्राफ्ट के स्तर पर तथा विषय वस्तु को लेकर लगातार सतर्क रहे और उन्होंने इसके प्रकाशन में कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई महाभारत के महारथी और उपेक्षित पात कर्ण्र  के अंतर्द्वंद और संघर्षों की कहानी को कहता यह नाटक आज इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि कर्ण आज के समाज में भी उसी संघर्ष और उपेक्षा को झेल रहा है इसमें कोई शक नहीं कि नाटककार ने कर्ण को केवल एक मिथक ही नहीं रहने दिया है बल्कि उसके अंतर्द्वंद के जरिए तमाम ऐसे सवाल उठाए हैं जिसके जवाब आज भी संवेदनशील समाज मांग रहा है क्राफ्ट के स्तर पर यह नाटक बेहद कसा हुआ है और सबसे बड़ी बात यह है कि यह नाटक अत्यंत पठनीय है आमतौर पर नाटक पठनीय नहीं होते उनकी प्रस्तुति में ही पता चलता है कि नाटक क्या है लेकिन महारथी एक ऐसा नाटक है जो अपनी पठनीयता में ही पाठक को न सिर्फ अपनी गिरफ्त में ले लेता है बल्कि उसे विमर्श के लिए तैयार भी करता है इस नाटक के संवाद नाटकीयता से बहुत दूर है बल्कि नाटक को पढ़ते और खेलते समय ऐसा लगता है जैसे यह किसी संवेदनशील व्यक्ति की सोचने की भाषा है नाटक में शब्दाडंबर नहीं बल्कि शब्द और कथ्य की सहज सार्थक अभिव्यक्तिै है जिसके कारण इसकी संप्रेषणीयता बहुत ज्यादा महसूस की गई है यह नाटक स्तब्ध कर देता है और हमें तैयार करता है कि हम अपने समाज के बारे में एक बार फिर सोचें और बार बार सोचें इस विशेष कार्यक्रम में इलाहाबाद के तमाम जाने माने रंगकर्मी उपस्थित रहे विभांशु वैभव ने भी नाटक के संदर्भ में अपनी बातें रखी और उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का बहुत संतोष है कि उनका नाटक लगातार रंग संस्थाओं द्वारा खेला जा रहा है और यही उनकी सफलता भी है ।
** चित्र व रिपोर्ट  अजामिल



रविवार, 18 फ़रवरी 2018

नन्हीं नृत्यांगना अंतरा गोतम कि कुछ नृत्य मुद्राएं

**नन्हीं नृत्यांगना  गुनगुन ने मंच पर की  यादगार प्रस्तुति
प्रयाग संगीत समिति प्रेक्षागृह में आज गुनगुन अंतरा गौतम ने नृत्य की शानदार प्रस्तुति की जिसकी लोगों ने खूब सराहना की अंतराल 6 साल की है और टैगोर पब्लिक स्कूल मैं कक्षा 2 की छात्रा है अंतर 3 साल की उम्र से ही मंच पर अपनी मां के साथ अनेक प्रस्तुतियां कर रही है अंतरा के पिता भी रंगमंच और TV के जाने माने अभिनेता है।
** अजामिल
सभी चित्र अजामिल

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

नाटक जितनी लव अपने अफसाने

**नाटक

मंच पर हुई प्यार की प्रस्तुति

जितने लब उतने अफसाने

     उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र इलाहाबाद के प्रेक्षागृह में वैलेंटाइन डे के अवसर पर अख्तर अली द्वारा लिखित नाटक -जितने लव उतने अफसाने - की शानदार प्रस्तुति की गई । हिंदी रंगमंच पर प्रेम को प्रस्तुत किया जाना हमेशा से बहुत संवेदनशील मसला रहा है । भरत नाट्यशास्त्र के अनुशासन में कमोबेश बंधे होने के कारण हिंदी नाटक मैं प्रेम को दिखाने मैं हमेशा सीमाएं बनाकर रंगकर्मी चलते रहे हैं लेकिन इसलिए कुछ वर्षों में इस विषय को रंगकर्मियों ने पूरे साहस के साथ प्रस्तुत करने का जोखिम उठाना शुरू कर दिया है । यह अलग बात है कि इस तरह की प्रस्तुतियों में फिल्मों और टीवी धारावाहिकों का प्रभाव  देखा जा सकता है । यह नाटक भी प्रेम सम्वेदनाओं का  कोलाज है यद्यपि इसमें  कोई ऐसी बात नहीं कही गई है  जो इसके पहले फिल्म या टीवी धारावाहिकों में  पेश न की गई हो । इस नाटक मैं  कलाकारों ने  बहुत अच्छा अभिनय किया ।  दोनों कलाकार काव्यात्मक रहे और बहकने  की तमाम गुंजाइश  के बावजूद अभिनेता और अभिनेत्री ने संतुलन बनाए रखा।  कुछ कंपोजीशन  बहुत ही अच्छी थी  । संगीत भी  यथोचित रहा  जो लगातार  प्रस्तुति के वातावरण को गति प्रदान कर रहा था । प्यार एक ऐसा विषय है जिसमें जरा सी चूक हो जाने पर यह हल्केपन का शिकार हो जाता है  ।  इस प्रस्तुति में अख्तर अली का ट्रीटमेंट इस विषय के साथ पूरी संजीदगी से भरा हुआ रहा । नतीजतन इस प्रस्तुति ने कहीं-कहीं दिल को छू भी लिया । मजेदार बात यह है क़ि प्रेम की अनुभूति के बिना कोई रचना बनती भी नहीं । प्रेम साहित्यिक रचनाओं में जीवन  का नव सृजन है । और यह सृजन इस प्रस्तुति में दिखाई देता है । पूरी टीम को बहुत बहुत बधाई ।

**रिपोर्ट  / अजामिल