××नाटक
अकेलापन
दास्तान बड़े बुजुर्गों के अकेलेपन की
पिछले दिनों उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के प्रेक्षागृह में जाने माने रंग निर्देशक अफजल खान द्वारा लिखित नाटक अकेलेपन की प्रस्तुति अफजल खान के निर्देशन में ही की गई आधुनिकता की गिरफ्त में दम तोड़ते पारिवारिक रिश्ते की व्यथा कथा इस प्रस्तुति में कहने की कोशिश की गई है पूरी दुनिया के फलक पर बड़े बुजुर्ग बहुत तेजी से अकेले होते जा रहे हैं और उनका यह अकेलापन धीरे-धीरे उन्हें मौत की तरफ ले जा रहा है इस प्रस्तुत की कथावस्तु बेहद प्रासंगिक है लेकिन अफसोस इस बात का है यह प्रस्तुति विचार और दृश्यों की पुनरावृत्ति और ठहराव की शिकार होकर उस तरह से प्रभावी नहीं बन पाई जैसे कि इसे होना चाहिए था और हम अफजल खान जैसे समर्थ निर्देशक से इसके प्रभावी होने की उम्मीद करते रहे हैं कहानी बुजुर्गों के अकेलेपन को ऊपर ऊपर स्पर्श करती रही और गहराई में बहुत सारे विरोधाभास छोड़ गई बड़े बुजुर्गों का अकेलापन बहुत बड़ी समस्या है जिसे उठाने के लिए इस समस्या की गहराई में जाना बहुत जरुरी है सोचना होगा कि इसमें दिखाई गई करोड़पति माली हालात वाली किसी बुजुर्ग महिला का अकेलापन किस तरह का होगा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की आवश्यकता है और ऐसी स्त्री के साथ परिस्थितियां क्या बनेगी कौन उसके साथ होगा और कौन नहीं यह सारी बातें देखना होगा बावजूद इसके अफजल खान ने अपनी कोशिश में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी एकल प्रस्तुति में डॉक्टर प्रतिमा वर्मा को लगभग 30 वर्षों के बाद मंच पर देखना अभिभूत कर देने वाला था सच कहा जाए तो उनके बेहतरीन अभिनय दे एक कमजोर स्क्रिप्ट को भी सब तरफ से भराव दिया और संभाले रखने की कोशिश की प्रतिमा वर्मा की इस वापसी को सार्थक और सकारात्मक रुप से देखा जाना चाहिए और उम्मीद करना चाहिए कि अब वह मंच से फिलहाल कुछ वर्ष वापस नहीं होंगी कुल मिलाकर इस प्रस्तुति में और कल्पनाशीलता तथा वैचारिक समृद्धता की आवश्यकता थी जोकि अफजल खान जैसे निर्देशक सहज ही कर सकते हैं संगीत पक्ष कमजोर था जो फिल्रर की तरह पूरे नाटक में बज रहा था जिससे संवादों के सुनने में कठिनाई पैदा हो रही थी इस प्रस्तुति को इंडोनेशिया ले जाने से पहले हम आग्रह करते हैं कि नाटक के निर्देशक अफजल खान नाटक के मुख्य कथावस्तु को और अधिक तार्किक बनाने की कोशिश करें आज प्रस्तुति से नाटकीयता को कम करते हुए जिन देशों की अवधि जरूरत से ज्यादा हो गई है उसकी अवधि को संतुलित करने की कोशिश करें इसमें कोई शक नहीं कि अफजल खान ने एक बेहतर विषय पर एक अच्छी प्रश्न याद करने की कोशिश की है यह विषय आज अप्रासंगिक भी है जरूरी भी है और दुनिया भर के करोड़ों-करोड़ों बड़े बुजुर्गों की व्यथा-कथा भी व्यक्त करती है कोई भी प्रस्तुति कभी अंतिम नहीं होती उसमें लगातार बदलाव होते रहते हैं यह प्रस्तुति भी समय के अनुसार और अधिक बड़े बुजुर्गों के अकेलेपन की करीब आएगी हम इसकी उम्मीद करते हैं मंच पर रोशनी थी लेकिन उस रोशनी में अकेलेपन का अवसाद झूठा लग रहा था ।
** समीक्षक अजामिल
** सभी चित्र विकास चौहान
*** इस प्रस्तुति के लगभग ढाई सौ चित्र विकास चौहान ने क्लिक किए हैं जो रंगकर्मी इन तस्वीरों को अपने पास सहेजना चाहे वह विकास चौहान से संपर्क कर सकता है
न्यू थियेटर देश विदेश के सभी रंगकर्मियों के लिए एक खुला मंच है | इसके ज़रिये रंगकर्मी नाटको से जुडी समस्यों के बारे मे बातचीत के लिए सादर आमंत्रित है | इस खुले मंच पर आप अपने लेख अपनी नाट्य संस्था की गतिविधियाँ, नाट्य उत्सवो की सूचना और रंग कर्मियों के परिचय, पते, संपर्क सूत्र प्रकाशनार्थ भेज सकते है ,हमारा संपर्क सूत्र है मोबाईल नंबर - 9889722209
शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017
नाटक अकेलापन की प्रस्तुति
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