बुधवार, 1 मार्च 2017

नाट्य कला में वेद मूलकता

नाट्यकला में वेद मुलकता
एक अविस्मरणीय संगोष्ठी वैचारिक सघनता में डूबे रहे ज्ञान पिपासु
इलाहाबाद संग्रहालय ने अपने 87 वे स्थापना दिवस के अवसर पर संग्रहालय परिसर में अवस्थित पंडित ब्रजमोहन व्यास सभागार में सघन वैचारिक ऊर्जा से भरी हुई विचार संगोष्ठी नाट्यकला मैं वेद विषय पर आयोजित की इस संगोष्ठी में विद्वान वक्ताओं में संस्कृत नाटकों मर्मज्ञ ओमप्रकाश पांडे संस्कृत हिंदी और पाश्चात्य नाटकों के विशेषज्ञ प्रोफेसर कमलेश्वर त्रिपाठी तथा नृत्य कला में पारंगत विदुषी विश्व प्रसिद्ध कलाकार पद्मश्री गीता चंद्रन उपस्थित रहें इस कार्यक्रम का विद्वत्तापूर्ण संचालन राजेश मिश्रा किया इस तरह से राजेश मिश्रा की सहभागिता भी चौथे वक्ता के रूप में उपस्थित स्वीकार की गई सच तो यह है कि इस तरह की संगोष्ठी बहुत दिनों के बाद इलाहाबाद में हुई पर इसका कारण इलाहाबाद संग्रहालय निदेशक राजेश पुरोहित जी की प्रयोगधर्मिता को माना जा रहा है इस संगोष्ठी में विद्वान वक्ता प्रोफेसर ओमप्रकाश पांडेय संस्कृत के विश्वविख्यात ग्रंथों से भरत नाट्यशास्त्र और नाट्यकला में विनम्रता के साथ तार्किक ढंग से समाहित हुए तत्वों की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया उन्होंने स्पष्ट संकेत किया की विश्व नाट्य कला के साथ समाज के रिश्ते को गहरे तक जांचने-परखने के बाद नाट्य कला सूत्रों में पिरोई जा सकी श्री पांडे ने उन तत्वों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया जिन की उपस्थिति में ही कोई नाटक नाटक बनता है नाट्य कला और नृत्य कला को समान रुप से देखने और और व्यवहार रूप में स्वीकार किए जाने का आग्रह करते हुए विदुषी नृत्यांगना गीता चंद्रन ने कहा की नाट्यकला देश काल और परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है कलाकार को अंतिम समय में एक सार्थक निर्णय लेने की चुनौती का सामना करना पड़ता है और वही परिवर्तन व्यवहारिक भी होता है भरत नाट्यशास्त्र और पश्चिम के नाट्य प्रतिमानों के हवाले से प्रोफेसर कमलेश दत्त त्रिपाठी ने नाट्य कला की अनेक विशेषताओं को रेखांकित किया उन्होंने कहा की परंपराओं की सीढ़ियां चढ़ने के बाद ही किसी मौलिक सृजन की संभावनाएं नाट्यकला में विकसित होती है नाट्यकला एक ऐसी विरासत है जिसका आधार वह परंपराएं हैं जो नाट्य अनुभवों और अनुभूति के रूप में हमें प्राप्त हुई है वक्ता के रूप में राजेश मिश्रा जी ने तमाम ऐसे मुद्दों को उठाया जिसके सहारे से अन्य विद्वान वक्ताओं को अपनी बात रखने में पूरा सहयोग मिला इलाहाबाद संग्रहालय के निदेशक राजेश पुरोहित ने इस संगोष्ठी को नाट्यकला को सीखने और समझने का एक स्वर्ण अवसर बताया और कहा कि इस संगोष्ठी से इलाहाबाद संग्रहालय का सम्मान बढ़ा है इस अवसर पर इलाहाबाद के तमाम लेखक कवि साहित्यकार बुद्धिजीवी और रंगकर्मी आरंभ से अंत तक उपस्थित रहे और सभी ने एक स्वर से कहा की संगोष्ठी ने सबको वैचारिक स्तर पर अभिभूत कर दिया है ऐसी संगोष्ठियां आज की आवश्यकता है ।
चित्र एवं रिपोर्ट अजामिल

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