रविवार, 20 मई 2018

रेडियो फीचर मानव अधिकार

रेडियो फीचर मानवाधिकार आलेख अजामिल प्रसारण  आकाशवाणी इलाहाबाद केंद्र

रेडियो फीचर

सुरक्षा का आधार मानवाधिकार

आलेख : अजामिल

( संगीत के साथ तालियों की आवाज़ , लोगों की आपसी बातचीत का स्वर । )

सूत्रधार : भाइयों और बहनों , आज की इस विशेष सभा में आप सबका स्वागत है । आज हम बात करेंगे मानवाधिकारों की । उन अधिकारों की जिन्होंने मानव जीवन को संतुलित और अनुशासित करने में प्रमुख भूमिका निभायी और विश्व समाज को दिया गरिमामय स्वाभिमानी जीवन । मानवाधिकार यानि किसी भी प्रकार के शोषण की मुखालफत में एक संगठित मुहिम । एक अभियान जो मनुष्य के दिलों को बदलता है । मानवाधिकार जो विनम्रता के साथ विश्व शान्ति और कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है ।

सूत्रधार - महिला : आज पूरी दुनिया के सभी देश सर्वसम्मति से स्वीकार किए मानवाधिकारों का सम्मान करते हुए अपने देश की अस्मिता परम्परा संस्कृति जीवन और सरहदों की सुरक्षा और विकास इन्ही मानवाधिकारों के कारण ही कर पा रहे हैं । मानवाधिकारों के प्रति हमारे सम्मानभाव के कारण ही आज पूरा विश्व एक बड़ा परिवार बन।गया है और इंसान और इंसानियत को बचाने का हमारा धर्म सर्वमान्य धर्म हो गया है । मानवाधिकारों ने हमारे दुखों और सुखों को आज न् सिर्फ एक कर दिया है बल्कि हमें इसके पक्ष विपक्ष में एक होकर जद्दोजहद का हौसला भी दिया है ।

एक आवाज़ : क्या हैं ये मानवाधिकार ? हमें भी तो बताइये ।

सूत्रधार : सही सवाल है आपका महोदय । क्या हैं ये मानवाधिकार । हमारा जीवन जिन वास्तविक्ताओ से संचालित और संपूर्ण होता है , जीवन सांस लेता है अक्सर हम उन्हें नहीं जानते - पहचानते । मानवाधिकार भी उन्ही में एक हैं । बहुत बार मानवाधिकार ही हमें जीने का अधिकार देते हैं और हमें मुश्किलों में टूटने से बचा लेते है । इसलिए बहुत ज़रूरी है कि हम अवश्य जाने की मानवाधिकार क्या है ?

सूत्रधार महिला : मैं बताती हूँ कि मानवाधिकार क्या है ? इजाज़त है ।

आवाज़ : अजी आपका स्वागत है । बताईये मानवाधिकार क्या है ।

सूत्रधार महिला : शुक्रिया । हम एक बड़े विश्व समाज के सक्रिय अंग है । हमारी किसी भी किया प्रतिक्रया का समाज पर असर पड़ता है । इसी लिए ज़रूरी है कि हम ऐसा कोई काम न् करें जिससे दूसरों को दुःख पहुँचे , उसकी स्वतंत्रता बाधिता हो । किसी का अपमान हो । वैमनस्यता पैदा हो । झगडे हों । धार्मिक उन्माद फैले । मानवाधिकारों के ज़रिये ऐसी ही परिस्थितियों पर काबू पाने के विनम्र कोशिश की गयी है ।

सूत्रधार :  मानवाधिकारों के साथ अपने देश भारत का रिश्ता बहुत पुराना है । हम हज़ारों वर्षो से वसुदेव कुटुम्बकम के सूत्र वाक्य में अटूट विश्वास करते चले आ रहे है । आज पूरी दुनिया मैं भारत अकेला ऐसा देश है जिसने संपूर्ण जीव जगत को जीने और जीने दो का मूलमंत्र दिया और दुनिया को बताया की प्रेम ही वह शक्ति है जिससे पूरी मानवता पर विजय पायी जा सकती है ।

सूत्रधार : विश्व के जीवों और वनस्पतियों के कल्याण के लिए भारतीय मनीषियों द्वारा की गयी यह स्थापना ही आज के समस्त परिप्रेक्ष्य में मानवाधिकारो का आधार सूत्र है । इसमें सभी के लिए मंगल कामनाएं की गयी है ।

सूत्रधार महिला : मानवाधिकारों में उन सभी अधिकारों को समाहित किया गया है जो मनुष्य के जीवन , मनुष्य के मान - सम्मान, मनुष्य के समान सामाजिक जीवन स्तर और उसकी अनुशासित स्वतंत्रता से जुड़े हैं । इन्ही अधिकारों को भारत के सम्मानीय संविधान में मंशा के बुनियादी जीवन अधिकारों के रूप में देखा गया है ।

एक आवाज़ : क्या ये अधिकार प्रवर्तनीय हैं ?

सूत्रधार : जी हां , ये अधिकार प्रवर्तनीय हैं । अदालतें चाहें तो ऐसा कर सकती है । इसके बरक्स वे सभी मानव अधिकार जो अंतर्राष्ट्रीय समझौते के तहत संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने सर्वसम्मति से स्वीकार किए गए हैं, को भी मानवाधिकार माना गया है । ये भी देश की अदालतों द्वारा प्रर्वर्तनीय है ।

सूत्रधार : ध्यान रखना होगा कि मानवाधिकारों में इस बात पर विशेष जोर दिया गया है कि हर परिस्थति में मनुष्य का प्रदूषण मुक्त वातावरण में जीवन जीने का अधिकार सुरक्षित होना चाहिए

सूत्रधार महिला : अभिरक्षा में आरोपी का उत्पीड़न और अपमान मानवाधिकारों की अवहेलना है । ऐसा किये जाने की कोई शिकायत

अगर पीड़ित व्यक्ति या संस्थान करता है तो मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत आयोग से जांच करवाए जाने की अपील की जा सकती है ।

सूत्रधार : मानवाधिकारों के बारे में आज समाज के 80 फीसदी लोग नहीं जानते । अशिक्षित लोगों  को पता ही नहीं होता कि उन पर किसी व्यक्ति , संस्था अथवा किसी क़ानून का भय दिखाकर मनमानी नहीं की जा सकती । इन विषम परिस्थितियों में मानवाधिकार उसकी सुरक्षा के लिए उसके साथ हैं ।

सूत्रधार महिला : मानवाधिकार मनुष्य के वे मूलभूत सार्वभौमिक अधिकार हैं जो मनुष्य को नस्ल, जाति, धर्म, राष्ट्रीयता लिंग आदि किसी भी अन्य कारणों से जीवन जीने के अधिकार से वंचित होने से बचाते हैं । मानवाधिकार के संघर्षों का परिणाम था कि

सूत्रधार : राजाराम मोहन राय द्वारा चलाये गए हिन्दू सुधार आंदोलन के बाद भारत में ब्रिटिश राज के दौरान सती प्रथा को जड़मूल से समाप्त कर दिया गया ।

सूत्रधार महिला : नाबालिगों की शादिया रोकने के सिलसिले में बाल विवाह निरोधक कानून पास हुआ ।

सूत्रधार : मनुष्य योनि में जन्म लेने के साथ ही जो अधिकार हमें समाज या परिवार द्वारा सहज प्राप्त होते हैं वे सभी मानवाधिकार है । ये अधिकार संविधान में दिए गए अधिकारों से अधिक महत्व पूर्ण हैं । क्योंकि मानवाधिकारों की पूर्ति पर मनुष्य जीवन का होना निर्भर करता है ।

सूत्रधार महिला : अधिकतर मानवाधिकार जीवन की पकृति और स्वभाव से सीधे सीधे मेल खाते है । जीने का अधिकार हमारा प्रकृति प्रदत्त अधिकार है । किसी कानून से हमें जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता ।

सूत्रधार : दुनिया के सारे कानूनों का एक ही धर्म है कि वे मानवाधिकारों के रक्षा करें । अगर कही मांनवाधिकारों का हनन हो रहा हो तो उसे रोकें । 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकारों का पहला मसौदा संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा से सर्वसम्मति से पारित होकर जब तमाम शांतिप्रिय लोगों के सामने आया तब उसका अभूतपूर्व स्वागत हुआ । लोगों ने विश्वास जताया कि दुनिया के अम्न चैन और मनुष्य के स्वाभिमान की रक्षा के लिए बुनियादी मानवाधिकारों के संरक्षण की ज़िम्मेदारी को उठाना ही होगा ।

सूत्रधार महिला : 1948 में असि  त्व में मानवाधिकारों ने मनुष्य और मनुष्यता के हित में लोगों के सोच को ही बदल दिया । खामोशी से अत्याचारों को सहन कर लेनेवाले लोगों को विरोध की तार्किक आवाज़ मिली । आपसी तनावों टकराहटों और संघर्षो में कमी आयी । मानवाधिकारों का हवाला देकर मतभेदों को हाशिये पर डालकर भुलाया जाने लगा । हालात सुधरने लगे । वक्त गुज़रता गया । एक दिन ऐसा भी आ गया जब ...

सूत्रधार : माँग और आपूति के अर्थशास्त्र में जैसे जैसे दुनिया उलझती गयी , आवश्यकताओं ने हमारे मन को छोटा कर दिया । लेकिन मानवाधिकारों का पुलिंदा बढ़ता गया । अपने स्वार्थो की सिद्धि के लिए हम मानवाधिकारों की चर्चा करने तक से कतराने लगे । लेकिन अच्छे लोगों ने मानवाधिकारों का साथ कभी नहीं छोड़ा । वे इसका सम्मान करते रहे और इसकी आवश्यकता को महसूस करते रहे । गुणी जनों ने कहा -

एक सधी हुई आवाज़ :

मानवाधिकार मानवीय प्रकृति से जन्मे सद्गुण है । ये कानून से बड़े कानून है । ये बिना किसी दबाव के सर्वस्वीकार्य हैं । ये समाज के लिए हितकारी हैं और मनुष्य की आत्मा को पवित्र बनाते हैं ।

सूत्रधार : विश्वव्यापी मानवाधिकार की परमार्थ - यात्रा को 67 वर्ष पूरे हो चुके हैं । दुनिया के किसी नियम कानून ने दुनिया में कभी इतने परिवर्तन नहीं किये हैं , दुंनिया को बदलन में जैसे और जितने काम मानवाधिकारों ने किये हैं । समाजशास्त्री स्वीकारते हैं -

एक अलग आवाज़ :

आज दुनिया एक अलग ही अंदाज़ में नाचते थिरकते हुए लोकतंत्र का उत्सव मना रही है । सब ओर आज़ादी के गीत गाये जा रहे हैं । लोगों का भरोसा और भी मजबूत हुआ है कि मानवाधिकारों की रक्षा करके और इसकी भावना को प्रचारित प्रसारित करके ही हम दुनिया को बचा सकते हैं ।

सूत्रधार महिला : आज दुनिया के वे सभी देश गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं जो मानवाधिकारों के साथ खड़े हैं और इन्हें संरक्षण देने को अपना कर्तव्य मान रहे हैं । ये पृथ्वी प्राकृतिक संपदा और नैसर्गिक ऊर्जा से मालामाल है । यह हमारा पालन पोषण भी कर रही है लेकिन संपदा पर किसी एक ताकत का अधिकार है , मानवाधिकार हमें यह सोचने का अधिकार नहीं देते ।

सूत्रधार : संयुक्त राष्ट्र संघ की विशेष महासभा द्वारा मानव समाज को दिए गए ये मानवाधिकार आज अपने संरक्षण के लिए सबसे आग्रह कर रहे हैं । समय के परिवर्तन के साथ विश्व समाज एक बड़ी उथल पुथल के बीच फंस गया है । व्यकिगत स्वार्थो के आगे आ जाने कारण मानवाधिकारों किअस्मिता को धक्का पहुँच रहा है ।

समाजशास्त्रियों का सोचना है -

एक अलग आवाज़ :

मानवाधिकारों का सम्मान आज हर उस संवेदनशील व्यक्ति के लिए गंम्भीर चिंता का विषय है जो मनुष्य मनुष्यता की पवित्रता का हिमायती है । परस्पर सद्भाव ही हमें मानवाधिकारों के सम्मान के बने रहने की गारंटी दे सकता  है ।

सूत्रधार महिला : दुनिया भर में मानवाधिकारों की संरचना में आयी जटिलता को मानवाधिकारों पर आये संकट के रूप में देखा जा रहा है । राजनैतिक और धार्मिक मुद्दों पर जिस तरह मानवाधिकारों का हनन हो रहा है उसके चलते आदमी वजूद ही मिटता दिखाई दे रहा है । धार्मिक उन्माद और कट्टरता ने मनुष्य को सदमार्ग से भटका दिया है । उसी धर्म ने जो कभी इंसान को प्रेम का मार्ग दिखाता रहा था ।

सूत्रधार: आज आतंकवाद ने मानवाधिकारों के सद उद्देश्यो की गहरी बुनियाद को हिलाकर रख दिया है । आतंकवाद मानवाधिकारों का दुश्मन दिखाई दे रहा है ।

सूत्रधार महिला : अपने देश के अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रो में व्याप्त अशिक्षा के कारण भी मानवाधिकारों के हनन का कोई विरोध नहीं हो रहा है । लोग अत्याचार को प्रारब्ध मानकर सहन कर रहे हैं । लोगों तक मानवाधिकारों की जानकारी को पहुँचाया जाए इसके प्रयास किये गए लेकिन ये प्रयास इतने कम थे क़ि इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा ।

सन 1975 में इन हालात को देखकर एक प्रस्ताव के ज़रिये साफ़ किया -

एक अलग आवाज़ : मआंवाधिकारों की जानकारी के अभाव का लाभ उठाकर अगर कोई व्यक्ति या संस्था किसी व्यक्ति का शोषण अथवा उत्पीड़न करता है तो यह बहुत दुखद स्थिति है । ज़िम्मेदार लोगों का यह कर्तव्य है कि मानवाधिकारों की जानकारी ऐसे अशिक्षित आदमी तक पहुंचाकर उसकी सुरक्षा सम्मान को सुनिश्चित करे ।

सूत्रधार : मानवाधिकारों के हनन की घटनाओ की रोकथाम के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने महासभा में पारित एक प्रस्ताव के आधार पर सन 1993 से 2003 तक के दशक को विरोध दशक के रूप में मनाया । इस दौरान नस्लवाद विरोध , महिला अधिकार , शिशु अधिकार और इनके संरक्षण पर विशेष प्रबंध किए गए । इनसे जुड़े अधिकारों का पालन सुनिशिचत किया गया ।

सूत्रधार महिला : संयुक्त राष्ट्र संघ के पारित प्रस्तावों पर सदस्य देशों ने काम किया गया । कमोबेश सफलता से उत्साहित होकर संघ के नए प्रस्तावों में मजदूर और उनके परिवारों के सुरक्षा प्रावधान , भ्रूण हत्या, घरेलु हिंसा , यौन शोषण , शारीरिक उत्पीड़न , मानसिक प्रताड़ना , बलात्कार जैसे दुखों से घिरी आधी दुनिया की मुक्ति के लिए मानवाधिकारों की सिफारिश को न् सिर्फ ज़रूरी माना गया बल्कि उसे फौरन से पेश्तर स्वीकार भी कर लिया गया ।

सूत्रधार : बात यहां तक आकर ख़त्म नहीं हो जाती । आज जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं जो मानवाधिकारो के दायरे से ओझल हो । आदिवासियों के भू अधिकारों और वनवासियों को उनकी ज़मीनों से बेदखल किये जाने की घटनाएं तक आज मानवाधिकारों की गिरफ्त में हैं और शोषण होने पर यही मानवाधिकार इनकी विरोध की आवाज़ बनते है ।

एक अलग आवाज़ : ये अलग बात है कि इनके परम्परागत अधिकार और मानवाधिकारों के बीच अभी भी दुरी बनी हुई है और नए अदालती कानूनों का कोई लाभ अभी तक इन्हें नहीं मिल पाया है ।

सूत्रधार महिला : बिलकुल सही कहा आपने । परन्तु इसके लिए लगातार प्रयास जारी है । मानवाधिकार की संकल्पना का उद्देश्य ही उन सभी समस्याओं को जड़मूल से निपटाना जो व्यक्ति की निजता में सेंध लगाकर दुःख का कारण बनती है ।

( तेज़ हवाओं के चलने समुद् का हाहाकार और लोगों के चीखने चिल्लाने की आवाज़ )

सूत्रधार : ये हाहाकार उन प्राकृतिक आपदाओं का है जो मानवसमाज को इस तरह से तोड़ती और विस्थापित कर देती है जिसका खामियाजा बरसो बरस आदमी को भुगतना पड़ता है । सुख बाढ़ गरीबी अकाल सुनामी भूकम्प युद्ध या छोटी बड़ी दुर्घटनाओं में लोग मर जाते हैं या उन्हें घरबार छोड़ना पड़ता है । उनका जीवन संकटग्रस्त हो जाता है । इन परिस्थितियों में मानवाधिकार आगे आते हैं और इन्हें संरक्षण देते हैं । कार्यदायी संस्थाओं को ऐसे अवसरों पर उनकी भूमिकाओं का स्मरण कराते हैं ।

सूत्रधार महिला : अनुभवों के साथ मानवाधिकारों की बनावट और बुनावट की समानांतर समीक्षा भी की जाती रही है जिससे मानवाधिकारों को ज़मीनी सच्चाईयों से जोड़ने में मदद मिली और अधिकारों को और अधिक लाभप्रद बनाया जा सका है ।

सूत्रधार : इन हाहाकारी प्राकृतिक आपदाओं के बाद कोई समय था जब आदमी अपने को बिलकुल अकेला महसूस करता था । आज ऐसा नहीं है । मानवाधिकारों ने आदमी के इस अकेलेपन को बाँट लिया है । हर व्यक्ति को अपनी ताकत मानकर देखने और उसे सहेजने का एक नज़रिया दिया है मानवाधिकार ने ।

सूत्रधार : आज अगर कहीं मानवाधिकारों का हनन होता है या किसी कमज़ोर को सताया जाता है तो मानवाधिकार के संरक्षण के लिए संकल्पित विवेकवान लोग सामने आकर न्याय की मांग करते है । और कमज़ोर को उसका अधिकार दिलवाकर ही दम लेते हैं । बुनियादी मानवाधिकार इन संघर्षों का अकाट्य आधार होता है ।

एक आवाज़ : अगर मानवाधिकार इतने ही सक्षम हैं तो आज चारों ओर का वातावरण इतना दुखदायी क्यों है श्रीमान । क्यों आदमी आदमी का उत्पीड़न और शोषण कर रहा है ?

एक आवाज़ : इतने उतावले न् हो श्रीमान । मानवाधिकार अधिकार हैं , कोई जादू की छड़ी नहीं कि आप घुमा देंगे और पूरी व्यवस्था चाकचौबस्त हो जायेगी । मानवाधिकार उस समय तक शत प्रतिशत सफल नहीं हो सकते जब तक इसे व्यापक स्वीकार और जन समर्थन नहीं मिलेगा । सामाजिक और राजनैतिक इच्छाशक्ति और निगरानी दोनों की आज मानवाधिकारों को आवश्यकता है । इसे मानव धर्म की तरह देखना होगा और हमें इसमें अपनी आस्था व्यक्त करनी होगी ।

एक आवाज़ : चीखने चिल्लाने से कभी कुछ नहीं बदलता । इसके लिए ईमानदारी से प्रयास करने होते है । बताईये क्या हमने कभी ऐसा किया ?

( बहुत सी आवाज़ों का मिलाजुला स्वर )

सूत्रधार : नहीं किया । मानवाधिकारों की इतनी बड़ी ताकत और सोच के होते हुए भी हम उतना सफल नहीं हुए जितना कि हमें हो जाना चाहिए था । हम जब तक सामाजिक परिवर्तन के लिए मानवाधिकारों को आवश्यक नहीं मानेंगे तब तक संपूर्ण सामाजिक परिवर्तन की कल्पना करना भी व्यर्थ है ।

सूत्रधार महिला : भाईयो और बहनों मानवाधिकारों के हनन के मामले सिर्फ समाज तक ही नहीं हैं । आर्थिक आधारों पर मानवाधिकारों का हनन जारी है । कामगारों और मजदूरों की मजदूरी का उचित वितरण का अभाव भी बड़ा संकट है । मजबूत इच्छाशक्ति से इस सकंट का निराकरण संभव है।

एक आवाज़ : केवल भाषणों से कोई परिवर्तन नहीं होता ।

सूत्रधार : सही कहा आपने । अमेरिका के राष्ट्रपति मार्टिन लूथर किंग ने  एक बार कहा था -

एक आवाज़ : जो पूरी दुनिया को बदलना चाहते हैं उन्हें इसकी शुरूआत अपने से करनी चाहिए । लोग उनके बदलने का अनुकरण आसानी से कर पाएंगे । परिवर्तन ही परिवर्तन की प्रेरणा है ।

सूत्रधार : यह सोचना गलत होगा कि मानवाधिकारों ने भारत की सामाजिक चेतना को प्रभावित नहीं किया । परिवर्तन हुए हैं । आदमी अपने अधिकारों के प्रति सचेत हुआ है और उसने अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने का साहस जुटाना शुरू कर दिया है ।

सूत्रधार महिला : सामाजिक कार्यो में पारदर्शिता ज़रूरी मानी जा रही है । कमज़ोर वर्गों के साथ लोग खड़े हो रहे हैं । आम आदमी अपने अधिकारों की मांग करने लगा है । स्त्री विमर्शो में स्त्री परिवार और बच्चे आज मुख्य चिंता में है । दलित सर उठाकर स्वाभिमान के साथ खड़े हैं । किसानों और मज़दूरों के हालात सुधरे है । ऐसा केवल मानवाधिकारों के कारण हो पाया है ।

सूत्रधार : वक़्त आ गया है कि लोगों को मानवाधिकारों से परिचित कराया जाए । उन्हें बताया जाए कि सामजिक जीवन कितना ही जटिलताओं से भरा हुआ क्यों न हो , मानवाधिकारों के हनन के अधिकार किसी को नहीं दिए गए हैं । मानवाधिकार का मतलव ही है कि सबको मिले स्वाभिमान के साथ जीने का अधिकार । निर्मल हो व्यवहार निर्मल हों संस्कार । सब तरफ हो बस प्यार प्यार प्यार ।

सूत्रधार महिला : आईये संकल्प कर कि हम किसी भी दशा में मांकाधिकारों का न हनन करेगें न किसी को ऐसा करने देंगे ।

अनेक आवाज़ें : हम सब मानवाधिकारों के संरक्षण के प्रति संकल्प बद्ध है । मानवाधिकार - ज़िंदाबाद । हमारा संकल्प - ज़िंदाबाद ।

संगीत

समाप्त

आलेख : अजामिल

9889722209

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