न्यू थियेटर देश विदेश के सभी रंगकर्मियों के लिए एक खुला मंच है | इसके ज़रिये रंगकर्मी नाटको से जुडी समस्यों के बारे मे बातचीत के लिए सादर आमंत्रित है | इस खुले मंच पर आप अपने लेख अपनी नाट्य संस्था की गतिविधियाँ, नाट्य उत्सवो की सूचना और रंग कर्मियों के परिचय, पते, संपर्क सूत्र प्रकाशनार्थ भेज सकते है ,हमारा संपर्क सूत्र है मोबाईल नंबर - 9889722209
शनिवार, 13 सितंबर 2025
-हबीब तनवीर: लोक और आधुनिक रंगमंच का संगमभारतीय हिंदी रंगमंच की चर्चा हबीब तनवीर के बिना अधूरी है। उन्होंने लोक परंपरा और आधुनिक रंगमंच को जोड़कर हिंदी रंगमंच को नई दिशा दी।1 सितंबर 1923 को रायपुर (छत्तीसगढ़) में जन्मे तनवीर ने नागपुर और अलीगढ़ में पढ़ाई करने के बाद लंदन की रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स से नाट्यकला का प्रशिक्षण लिया। अंतरराष्ट्रीय अनुभव लेकर वे भारत लौटे, जहाँ रंगकर्म से आजीविका पाना कठिन था। उन्होंने फिल्मों और आकाशवाणी से जुड़कर रोज़गार साधा, किंतु उनकी असली रुचि रंगमंच ही रही।1954 में उनका ऐतिहासिक नाटक आगरा बाज़ार मंचित हुआ। इसकी प्रस्तुति खुले बाजार में लोक कलाकारों और युवाओं के साथ की गई। दर्शक भी इसमें सहभागी बन गए। यह प्रयोग हिंदी रंगमंच में मील का पत्थर साबित हुआ।1959 में उन्होंने पत्नी के सहयोग से नया थिएटर की स्थापना की और छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों को मंच पर उतारा। उनकी शैली में छत्तीसगढ़ की नाचा परंपरा का गहरा प्रभाव रहा। लोक जीवन, गीत-संगीत और परंपराओं को उन्होंने आधुनिक मंचीय तकनीक के साथ जोड़ा और एक नई नाट्यधारा गढ़ी।उनके चर्चित नाटकों में आगरा बाज़ार, चरणदास चोर, मिट्टी की गाड़ी, शतरंज के मोहरे, पोंगा पंडित, गाँव के नाम ससुराल, मोर नाम दामाद और बहादुर कलारिन प्रमुख हैं। इनकी विषयवस्तु सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आधारित रही, जिनमें आम आदमी की पीड़ा और संघर्ष झलकता था।उनके योगदान को देखते हुए उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री और पद्मभूषण जैसे सम्मान मिले।हबीब तनवीर ने सिद्ध किया कि रंगमंच केवल मंच तक सीमित नहीं, बल्कि जनता से सीधा संवाद है। लोक और आधुनिकता का यह संगम उन्हें हमेशा भारतीय रंगमंच के इतिहास में अमर बनाए रखेगा।**अजामिल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें