शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

जंगल जानवर और हमारा अधिकार



जंगल, फल और हमारा दायित्व

बंदर और सूअर जैसे जंगली जानवर अक्सर फलों को नुकसान पहुँचाते हैं। निश्चित रूप से इससे मनुष्य को कठिनाई होती है, क्योंकि यह फल बड़ी मेहनत से पैदा किए जाते हैं। परंतु यह भी सच है कि जंगलों में फल केवल मनुष्य के लिए ही नहीं उगते, बल्कि प्रकृति ने उन्हें वहां रहने वाले तमाम जीवों के हिस्से के रूप में भी बनाया है। जब जंगलों में फलों की प्रचुरता होती है, तो स्वाभाविक है कि जंगली जीव भी अपनी भूख मिटाने के लिए इनका उपभोग करेंगे। हाँ, वे इन्हें बर्बाद भी करते हैं, लेकिन यह उनका स्वभाव है, न कि कोई अपराध।

सोचने वाली बात यह है कि यदि हम इन जीवों को पूरी तरह भगा दें तो वे अपना भोजन कहाँ से पाएँगे? यह धरती केवल मनुष्य की नहीं है, बल्कि करोड़ों प्रजातियों का साझा घर है। जिस प्रकार मनुष्य जंगलों पर अपना हक जताता है, उसी प्रकार बंदरों, सूअरों और अन्य जीवों का भी उस पर समान अधिकार है।

आज स्थिति यह है कि मनुष्य ने अपनी जरूरत और कमाई के लिए जंगलों की अंधाधुंध कटाई शुरू कर दी है। नतीजा यह हुआ कि जानवरों के प्राकृतिक घर और भोजन के स्रोत समाप्त होते जा रहे हैं। यही कारण है कि वे शहरों और गाँवों की ओर रुख कर रहे हैं और खेतों-बागों को नुकसान पहुँचाते हैं। यह नुकसान वास्तव में हमारी ही बनाई हुई समस्या है।

सच तो यह है कि जंगलों की कटाई न केवल जानवरों को उजाड़ रही है बल्कि कई दुर्लभ वनस्पतियों और प्रजातियों को भी विलुप्त कर चुकी है। धीरे-धीरे मनुष्य भी इस बड़े प्राकृतिक संसाधन से दूर होता जा रहा है। इसलिए जरूरी है कि हम जंगलों और वहाँ रहने वाले जीवों को उनका हिस्सा लौटाएँ। हमें यह स्वीकार करना होगा कि प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए कुछ नुकसान उठाना मनुष्य का कर्तव्य है।


जंगल और जानवर : बहस का मुद्दा

पक्ष में तर्क (मनुष्य की चिंता):

  • बंदर और सूअर खेत-बाग़ों को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • किसान अपनी मेहनत और लागत से फल–फसल उगाते हैं, जिन्हें जंगली जानवर बर्बाद कर देते हैं।
  • ऐसे में मनुष्य को अपनी रोज़ी-रोटी बचाने का अधिकार है।

विपक्ष में तर्क (जानवरों का पक्ष):

  • जंगल उनके असली घर हैं, परंतु जंगल कट रहे हैं।
  • भोजन और आवास छिन जाने पर वे मजबूरी में गाँव-शहर आते हैं।
  • धरती पर केवल मनुष्य का नहीं, सभी प्रजातियों का समान अधिकार है।

मध्य सवाल:
क्या मनुष्य अपनी सुविधा के लिए प्रकृति को नष्ट कर सकता है?
क्या कुछ नुकसान सह लेना हमारी ज़िम्मेदारी नहीं, ताकि पारिस्थितिकी संतुलन बचा रहे?

निष्कर्ष:
मनुष्य और जानवर दोनों का अस्तित्व जंगल से जुड़ा है। यदि जंगल और जैव–विविधता सुरक्षित नहीं रहेगी तो अंततः सभ्यता भी संकट में पड़ जाएगी। समाधान यही है कि विकास और संरक्षण में संतुलन बनाया जाए। 

**अजामिल



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें