** समानांतरनामा और वरिष्ठ रंगकर्मी
अनिल रंजन भौमिक
प्रकाशित हुआ एक और विशेषांक
आज से 48 वर्ष पहले सुपरिचित रंगकर्मी अनिल रंजन भौमिक रंगमंच के क्षेत्र में अनेक सपनों को लेकर इलाहाबाद आए थे। उन्होंने बड़ी विनम्रता के साथ अपने रंगकर्म की साधना आरंभ की। यह वह समय था जब इलाहाबाद का रंगमंच अपनी नाट्य प्रस्तुतियों के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध था। यह जानकर आश्चर्य होगा कि उस दौर में इलाहाबाद में सबसे अधिक नाट्य प्रस्तुतियां की जाती थीं।
उस समय समर्पित रंगकर्मियों द्वारा आयोजित लघु नाट्य प्रतियोगिताओं में ही लगभग 400 नाटक संगीत समिति के मंच पर देश की विभिन्न नाट्य संस्थाओं द्वारा प्रस्तुत किए जाते थे। इन आयोजनों में 600 से 800 तक रंगकर्मी शामिल होते थे। इसी कालखंड में वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल रंजन भौमिक ने अपनी नाट्य प्रस्तुतियों का शुभारंभ इलाहाबाद से किया। उल्लेखनीय यह रहा कि मंच पर कुछ ही प्रस्तुतियों के बाद वे एक चर्चित नाम बन गए।
अनिल रंजन भौमिक रंगकर्म के अतिरिक्त अन्य अनेक कला-विधाओं में भी पूरे समर्पण के साथ कार्य करना चाहते थे। उनकी संस्था समानांतर ने कला की विभिन्न विधाओं को केंद्र में रखकर साहित्य, कला और संस्कृति से जुड़े लोगों के बीच सराहनीय कार्य किए। उनकी बहुमुखी प्रतिभा को लोगों ने सराहा और स्वीकार किया।
अनिल रंजन भौमिक सदैव एक समर्पित रंगकर्मी और संस्कृतिकर्मी रहे। उनका सपना था कि रंगकर्मी एक परिवार की तरह हों, सब मिलकर श्रेष्ठ प्रस्तुतियों का मंचन करें और समाज के हित में सर्वश्रेष्ठ कार्य करें। उनके इस आग्रह से अनेक रंगकर्मी उनकी संस्था के साथ परिवार की भांति जुड़े। किंतु अन्य संस्थाएं एक मंच और एक छत के नीचे न आ सकीं। सभी अपने-अपने ढंग से काम करना चाहते थे। यह गलत नहीं था, लेकिन रंगकर्मियों का एक-दूसरे का सहयोग न करना दुखद अवश्य था। इस रवैये ने अनिल रंजन भौमिक को बहुत कष्ट दिया।
फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। वे अकेले चलने में भी विश्वास करते रहे। उनका यह एकाकी प्रयास आज, 48 वर्षों बाद, समानांतर के मंच पर अनेक विधाओं में अपने विशिष्ट स्वरूप के साथ फलित हो रहा है। आज पूरे देश के रंगकर्मी उनके साथ सहयोग कर रहे हैं। समानांतर संस्था की ऐसी छवि बनी है जिसका देशभर में आदर होता है और जिसके साथ जुड़कर कार्य करना लोग गर्व का अनुभव करते हैं।
हाल ही में समानांतर ने अपनी बहुचर्चित अनियतकालीन पत्रिका समानांतरनामा का चौथा अंक, देश-विदेश के बहुचर्चित नाटककार और निर्देशक बादल सरकार पर केंद्रित करते हुए प्रकाशित किया। इस विशेषांक को अनिल रंजन भौमिक ने नाम दिया — बादल सरकार शतक विशेषांक। यह पत्रिका अपनी गंभीरता और सुंदरता के कारण आज रंगकर्मियों के लिए आवश्यक पठन सामग्री बन चुकी है।
बादल सरकार शतक विशेषांक में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर अत्यंत विचारणीय सामग्री दी गई है। इसमें नेमिचंद्र जैन और प्रतिभा अग्रवाल जैसे वरिष्ठ रंगकर्मियों ने ‘धरोहर’ स्तंभ के अंतर्गत बादल सरकार के सुप्रसिद्ध नाटक बाकी इतिहास और एवं इंद्रजीत पर उत्कृष्ट आलेख लिखे हैं। साथ ही, विश्व रंगमंच दिवस पर बादल सरकार द्वारा दिया गया उनका सार्थक संदेश भी सम्मिलित किया गया है।
इस विशेषांक में बादल सरकार के रंग-जीवन के विविध अनुभवों को पढ़ना भी एक अलग तरह का अनुभव है। इसमें पंडित सत्यदेव दुबे, सुलभा देशपांडे, महेश चंद्र चट्टोपाध्याय, अनामिका हक्सर और सुधीर मिश्रा के अत्यंत महत्वपूर्ण आलेख और टिप्पणियों को भी स्थान मिला है। बादल सरकार के ‘तीसरे रंगमंच’ पर विशेष रूप से वैचारिक टिप्पणियां प्रकाशित की गई हैं।
‘रंग वैचारिकी’ खंड में विजय तेंदुलकर, श्याम बेनेगल, गिरीश कर्नाड, अमोल पालेकर, मोहन आगाशे, देवराज अंकुर, प्रोफेसर लाल बहादुर वर्मा, कीर्ति जैन, राकेश वेदा, प्रोफेसर मित्रसेन मजूमदार और राजेश कुमार के विचारों को रेखांकित करने वाले उपयोगी आलेख भी शामिल हैं। इसके अलावा भी अनेक पठनीय और सघन सामग्री इस अंक में प्रस्तुत की गई है।
जो लोग रंगमंच में रुचि रखते हैं और विशेष रूप से बादल सरकार को समझना और पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए समानांतरनामा का यह अंक अत्यंत उपयोगी और आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि इस अंक में बादल सरकार के सुंदर चित्र भी प्रकाशित किए गए हैं। यह अंक हर दृष्टि से एक आवश्यक हस्तक्षेप कहा जा सकता है।
इस अंक के संपादक मंडल में राजेंद्र कुमार, देवराज अंकुर और अनीता गोपेश का सहयोग विशेष उल्लेखनीय है। इनके सहयोग के बिना यह अंक इस रूप में संभव नहीं था। इस विशेषांक में बादल सरकार के सुप्रसिद्ध नाटक सीढ़ी का अनुवाद (अनिल रंजन भौमिक द्वारा) और नाटक बीज का अनुवाद (यामाहा सराफ द्वारा) भी प्रकाशित किया गया है, जिससे यह अंक और विशेष बन जाता है।
समानांतरनामा का यह अंक हिंदी रंगमंच की पत्रिकाओं के बीच एक मील का पत्थर है, जिसे लंबे समय तक याद किया जाएगा। जो लोग बादल सरकार को उनके रंगकर्म के माध्यम से समझना चाहते हैं, उनके लिए यह अंक एक संदर्भ-पुस्तक की तरह है। अनिल रंजन भौमिक के इस प्रयास से हिंदी रंगमंच निस्संदेह समृद्ध हुआ है।
– अजामिल
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